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ऐ मैना तू गुमसुम क्यूँ है, क्यूँ छत पे आना छोड़ दिया ? क्यूँ तेरी आँखें अश्रु भरी, क्यूँ गीत सुनना छोड़ दिया ? क्या तेरे सपनो का घर, कोई प्रोमेट्रिक तोड़ गया ? या बीच सफ़र में हाथ तेरा, प्रोफाइल ...
आयी हूँ मैं.......... आयी हूँ मैं ...... अपने परिवार से बिछड़कर....... पूरी यादों का बसेरा समेट कर............. थोड़ा सा एतबार करना.... माँ से कम ही प्यार करना.....पर इन हाथों को हमेशा थाम कर ...
देख माँ, सज गई मैं बन गई दुल्हन. पिता ने पुण्य तो कमा लिया होगा भाई का बोझ कुछ तो कम हुआ होगा देख कितनी रौनक है घर में, हर रिश्ता मुझसे जुड़ गया होगा, पर माँ अब भी कुछ तो दहक रहा मेरे मन में... ...
एक आह कराहती है सीने में मायूसी छाई है जीने में अतीत के दरवाजों के दरारों से जब यादें लौटती हैं फिर से जब ना चाह कर भी खो जाता हूँ ख्यालों में जब बेजान सा होकर रह जाता हूँ तब एक आह कराहती है सीने ...
विवशता को तुम्हारी समझता हूं मैं.... बेबसी में कभी जीने नहीं दूँगा मैं.... मजूबरी की जंजीरों में बंधने न दूँगा तुम्हें... तमाम खुशियाँ जहां भर की तेरे कदमों में रख दूँगा मैं... एक तेरे मुस्कुराते ...
लकीर दर लकीर.. बनती हुई एक तस्वीर। धुंदले पड़तेे हुए बहुत से अक्स... और समय की रेत पर उभरती हुई एक नयी इबारत! ... चीज़ें वहीँ रह जाती हैं... बस उनके रूप बदल जाते है.... ...
‘ ले गया कपड़े सब मेरे दूर ..... बहुत दूर काल बहती नदी में मैं निर्वसना तट पर स्वप्न देखती देह का ’ ...
वह मरा नहीं ,वह तर गया > वर्षो से वह जीने के लिए > ज़िंदगी से लड़ रहा था > जीने की चाह में दो रोटी के लिए > कितने ही भोग भोग रहा था > जब कभी बेरोजगारी जोंक से लड़कर जीत जाता > बेचारा महँगाई डायन से ...
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। चमक उठी सन सत्तावन में, वह ...
उमंग से भरे चेहरे पल होंगे तभी सुनहरे मिले दिशा जब उस ओर होती है जिधर से भोर खिलती कली खिलती धूप बहती नदी खिलता रूप उन्मुक्त हो गगन उड़ान नारी स्वयं की पहचान सफल होय जीवन अपना शेष रहे न कोई सपना गीत ...
इक रूह ने जाते हुए ये जिस्म से कहा, ले देख ले अब तेरी क्या औक़ात रह गई...! सारी दौलात सारी शोहरत सब पीछे छूट गयी.. तेरी काया भी ना तेरे साथ रह गयी तेरा नाम बीते जामाने की एक बात हो गयी.. जो तेरे अपने ...
वो मेरा हाल क्यूँ पूछेंगे भला; मुझसे कैसा वास्ता? अब मेरी पतलून मे जेब नही| जो बचा था नोच कर खा गये; अब न मांस रहा, न गिद्ध रहे| बचा-खुचा हांड़ का ढाँचा, लवारिस; ज़िसके न हकदार, न खरीददार रहे| मैं माटी ...
पाषाण जैसी जिन्दगी नरम घास कहाँ तलाश करुँ सर्द अंधेरी रात है, सूर्य -किरण कहाँ तलाश करुँ रिसता है घाव बहुत गहरा हंसने के बहाने कहाँ तलाश करुँ नदियों में गटरों का गन्दा जल पतित पावनी कहाँ कहाँ ...
मैं पथ का कंकड़-पत्थर हूँ, जाने किस शिल्पी की टाँकी से, टकराकर में चूर हुआ! अपने विशाल गिरी गृह कुटुंब से, छिन्न-भिन्न हो दूर हुआ! आ पहुँचा मानव बस्ती में, चिर-परिचयहीन प्रवासी हूँ! मैं पथ का ...
बारिश की बूंदो ने आज मन के तार छेङे है आ जाओ साजन मेरे हम तो यहाँ अकेले है सावन के मौसम में बादल छाये घनेरे है आ जाओ साजन मेरे हम तो यहाँ अकेले है मदमस्त करती हवायें ये महकाती फिजाऐं ये धङकन बढाके ...