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दो शब्द : (इस ग़ज़ल संग्रह के लिए, जिसका नाम है ---) "घर गई है छाँव" सुनील आकाश 'प्रतिलिपि' के पाठकों के लिये ज़रूर एक नया नाम हो सकते हैं मगर वे एक मंझे हुई लेखक हैं और 30-35 वर्षों से सहित्य मॆ अपना ...
1) फितरत ही मुझ ग़रीब की कुछ ऐसी है ना पल पल बदलता मौसम अच्छा लगता है ना पल पल बदलता इंसान 2 )इस दुनिया से नहीं है वास्ता मेरा कोई ग़ुरबत में मेरी ज़िन्दगी का मज़ा है ना छोड़ने के लिए मजबूर है ज़िन्दगी ...
ज़िंदगी में प्यार होना हो गया, लग रहा अपना ज़माना हो गया। जो कभी बात समजाते थे हमें खुद उनका भी फ़सानां हो गया। प्यार में जब से हम रहें खिलते क्यों वहाँ तेरा वीराना हो गया। जो पल हमें मिलते है आप से, ...
रातें भी दर्द भी कहानी भी, उफ्फ! क्या चीज है जवानी भी। लंबी रातें करवटें तन्हाइयों की, फिर रंगीन शाम की रवानी भी। वो तुझसे मेरी अधूरी मोहब्बत, अश्कों से पूरी हुई वो कहानी भी। वो कल की धूप में सूखी ...
शीशे सा भरा नस नस में उठकर न अब चला जाये। कोई सहारा देकर उठाये खुद से अब न उठा जाये अक्सर सोचा मैंने मय पिये पीना अब छोड़ दिया जाये। जब पीते थे यारों में जीते थे अब तन्हा किधर जिया जाये। आते आते ही ...
लिखूं वो ,जो तुम पढ़ना चाहते हो तो वो झूठ होगा दिखूँ मैं अगर तुम्हारे मुताबिक तो वो झूठ होगा जो उसने पूछा कि कैसे चल रहा है अगर कहूँ कि सब ठीक है तो वो झूठ होगा तो यूं समंझ लो कि मैं तुम्हें सच ही ...
अंग-अंग सारा टूटता,छलनी हुआ शरीर कब छोड़ोगे बोलना ,अपना है कश्मीर जग सारा अब जानता,'पाक' नही करतूत भीतर से हर आदमी,छिपा हुआ बारूद जिस झंडे की साख हो ,बुलंद सितारे-चाँद झुक क्यूँ आखिर वो रहा,शरीफजादा ...
देखकर हमारी शहादत जिनको खुशी मिलती है है अपना पर शक्ल पड़ोसी से उसकी मिलती है ऐसा भी नही है की मालूम न हो ठिकाना उसका पर सियासत के दिल में वोटों की बेबसी मिलती है अजब रिवायत है इस शहर की, वफाओं को भूख ...
किसी भी भाव अब ईमान के ज़ेवर नहीं बिकते, अगर ऐसे न होते हम हमारे घर नहीं बिकते. हामारे सोच में ही खोट है शायद कहीं कोई, खुले बाज़ार में वरना कभी ख़ंजर नहीं बिकते. परिंदे मार कर खा जाए कोई ये तो ...
तुम नजर भर ये, अजीयत देखना हो सके, मैली-सियासत देखना ये भरोसे की, राजनीती ख़ाक सी लूट शामिल की, हिमाकत देखना दौर है कमा लो, जमाना आप का बमुश्किल हो फिर, जहानत देखना लोग कायर थे, डरे रहते थे खुद जानते ...
वो औरत रोज़ अपने आप पर यूँ जुल्म ढाती है स्वयं भूखी रहे पर रोटियाँ घर को खिलाती है नशे में धुत्त अपने आदमी से मार खाकर भी बहुत जिन्दादिली से दर्द को वो भूल जाती है वो बहती इक नदी है तुम उसे पोखर समझना ...
सारे मौसम सुहाने हुए! जिंदगी के तराने हुए!!1 सोचती हूँ की उनसे मिलूँ! उन से मिल के ज़माने हुए!!2 हो गए प्यार में कैद वो! इस क़दर वो दिवाने हुए!!3 इश्क छुपता कहाँ है भला! राज़ सारे फ़साने हुए!!4 याद ...
बह रहा है ख़ून मज़हबी उन्माद में मेरा ख़ुदा, तेरा ख़ुदा जाहिल -ए-ईजाद में ख़ुदा ने सौगात में दुनिया अता किया मज़हब का क्या करेगा मरने के बाद में इश्क़ भी रूसवा हुआ मज़हब के नाम पर लुट रही है ...
एक किस्सा है मगर मुझे वो सुनाना नहीं है दरअसल मेरी सुने, ऐसा तो जमाना नहीं है इस कम्बख़्त दिल की गहराई बहुत है वैसे मगर उसे नापने वाला, कोई पैमाना नहीं है यकिनन, असली ज़ख्म मेरे भीतर है कहीं मेरे यार ...