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वापसी
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वापसी

प्रवासी साहित्य

सोचा नहीं था कि फिर कभी लौटूंगा। मैं तो तभी तुम्हरी माटी को माथे से लगाकर विदा हो लिया था, कि अब पंचतत्व में मिलने के बाद ही कहीं पछुवा हवा के साथ धूल में मिलकर उड़ता हुआ तुम्हारे दर्शन कर पाऊँ। ...

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1.

वापसी

19 5 9 मिनट
28 मई 2024