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शुभांगी
शुभांगी

यह आदर्श उन्होंने तय किये थे और शायद जरूरी भी था, पर निश्चय ही सच क्या था और अब क्या होने वाला था, गुलिया इसी अंधेड बुन में चली जा रही थी, बिना पगडंडियों का ध्यान किये। बेतरतिब कदम उसे किस तरफ ले ...

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