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लेखा जोखा
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लेखा जोखा

सोचो जरा हांथ हिरदयँ में रखकर, अब तक किया क्या ,बचा और क्या है। कितना समेटा है छल छद्म करके- परहित के खातिर कितना दिया है।। स्वतः कितना पाया ,किस किस से पाया, कितना है संग्रह ,कितना गंवाया। बही ...

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लेखा जोखा

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05 मार्च 2025