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कुण्डलिया छंद
कुण्डलिया छंद

जनता भोली गाय है ,दुष्टों की चौपाल। जैसे चाहे हांकते , मूंक बने गोपाल।। मूंक बने गोपाल,ध्येय पूरा काला है। विक्रत ये राजनीति,छीन रही निवाला है।। कह बादल कवि राय,स्वप्न एक यही सत्ता। अपना काम ...

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Chapters

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कुण्डलिया छंद

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21 मार्च 2021
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जीवन की दौड़

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नायक

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