सुप्रसिद्ध लेखिका शिवानी जी का संपूर्ण साहित्य जगत ही पाठकों को अपनी तरफ चुंबक की तरह खींचता है। शिवानी - साहित्य की तुलना अगर हीरे से की जाए तो यह उपन्यास कृष्णकली इनमें कोहिनूर की तरह है। कृष्णकली का चरित्र पाठक का कैसे अपना हो जाता है यह वह इसे सुनते हुए समझ नहीं पाता और उसके जीवन की हरेक खुशी से खुश होता ,उसकी त्रासदियों पर उसके साथ रोता ,उसे दुलराता आगे बढ़ता है।सांवली, बड़ी , चपल,गहरी आंखों और लंबे बालों वाली नायिका कृष्णकली आपको अपने में इतना अधिक बांध लेगी कि उसके आसपास कोई दूसरा आ ही नहीं सकता।चाहे आपकी उम्र सोलह वर्ष की हो या साठ वर्ष की - कष्णकली सुनकर आप एक समान रूप से भावों की गहराई में डूब जाएंगे।इस कालजयी उपन्यास को वाचिका ने पढ़ा भी है खूब डूबकर - उनके हरेक शब्द कानों में घुलकर आंखों के सामने चित्र बनकर उपस्थित हो जाते हैं।
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