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जावेद अख्तर- नज़्म
जावेद अख्तर- नज़्म

जावेद अख्तर- नज़्म

मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ कि तुम तो फिर भी हक़ीक़त हो कोई ख़्वाब नहीं यहाँ तो दिल का ये आलम है क्या कहूँ कम-बख़्त भुला न पाया वो सिलसिला जो था ही ...

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Chapters

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2.

अजीब आदमी था वो

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आसार-ए-कदीमा

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07 एप्रिल 2024
4.

मेरा आँगन मेरा पेड़

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5.

परस्तार

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7.

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8.

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9.

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10.

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