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"घर गई है छाँव" 
(38 गज़लों का संग्रह)
"घर गई है छाँव" 
(38 गज़लों का संग्रह)

"घर गई है छाँव" (38 गज़लों का संग्रह)

"घर गई है छाँव" (36 ग़ज़लों का संग्रह) ग़ज़लकार : सुनील आकाश प्रकाशक: प्रतिलिपि प्रकाशन © कापीराइट : सुनील आकाश -------------------------------- सादर समर्पित आदरणीय बुआजी सुश्री राजेश रस्तोगी जी को ...

4.2
(611)
18 मिनट
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Chapters

1.

दो शब्द : इस ग़ज़ल-संग्रह के लिए

1K+ 4.0 2 मिनट
28 नवम्बर 2017
2.

ग़ज़ल-1 : "बीच में फूलों के बैठा...."

1K+ 4.5 1 मिनट
12 मार्च 2021
3.

ग़ज़ल-2 : "जिनको भड़काया गया हो आसमानों के..."

1K+ 4.5 1 मिनट
08 अगस्त 2018
4.

ग़ज़ल-3 : "व्यवस्था में विष घोलकर, उद्धार की बातें..."

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5.

ग़ज़ल-4 : "चाहे भूतल पर रहे या जा बसे आकाश पर"

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6.

ग़ज़ल-5 : "धूप धोखों की मिली, झुलसा हुआ विश्वास है"

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7.

ग़ज़ल--6 : "जिनको अज़्मत बख्शी....."

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8.

ग़ज़ल-7 : "बेशक ज़माने से लड़ो, कायनात से लड़ो"

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9.

ग़ज़ल-8 : आँखों मॆ बेबसी है और होठों पे ताले हैं

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10.

ग़ज़ल-9 : "खबरदार होना चाहिए।"

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11.

ग़ज़ल-10 : "दुष्कर तो जीवन किया है सिरफिरी ..."

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12.

ग़ज़ल-11 : "राष्ट्र-गान कहाँ है ?"

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13.

ग़ज़ल-12 : "चाहतों का दामन.....सामने खड़े हुए"

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14.

ग़ज़ल-13 : "अपनी जुल्फों को ज़रा खुल के..."

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15.

ग़ज़ल-14 : "तल्खियां बढ़ती गईं और फासले बढ़ते गये"

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16.

ग़ज़ल-15 : "छोड़िए, अब क्या कहें"

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17.

ग़ज़ल-16 : "तुम्हारे लिये है !"

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18.

ग़ज़ल-17 : "आदमी की आँख का परिंदा है।"

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19.

ग़ज़ल-18 : "कितने हसीनतर थे, जो ख्वाब जल गये।"

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20.

ग़ज़ल-19 : "नालों से कुछ....आहों मॆ असर रखते हैं"

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