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भगवद्-गीता  »  अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण  » 








  अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण   शक्तिशाली
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  अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण   शक्तिशाली

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Chapters

1.

भगवद्-गीता  »  अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण  »    अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण   शक्तिशाली

24 5 7 मिनट
07 अप्रैल 2023
2.

अध्याय 2: गीता का सार

11 0 13 मिनट
07 अप्रैल 2023
3.

अध्याय 3: कर्मयोग   इस भौतिक जगत में हर व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार के कर्म में प्रवृत्त होना पड़ता है।

6 0 8 मिनट
07 अप्रैल 2023
4.

अध्याय 4: दिव्य ज्ञान   आत्मा, ईश्वर तथा इन दोनों से सम्बन्धित दिव्य ज्ञान शुद्ध करने, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है। ऐसा ज्ञान कर्मयोग का फल है।

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5.

अध्याय 5: कर्मयोग—कृष्णभावनाभावित कर्म   ज्ञानी पुरुष दिव्य ज्ञान की अग्नि से शुद्ध होकर बाह्यत: सारे कर्म करता है,

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6.

अध्याय 6: ध्यानयोग   अष्टांगयोग मन तथा इन्द्रियों को नियन्त्रित करता है और ध्यान को परमात्मा पर केन्द्रित करता है।

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7.

अध्याय 7: भगवद्ज्ञान   भगवान् कृष्ण समस्त कारणों के कारण, परम सत्य हैं। महात्मागण भक्तिपूर्वक उनकी शरण ग्रहण करते हैं ।

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8.

अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति

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9.

अध्याय 9: परम गुह्य ज्ञान   भगवान् श्रीकृष्ण परमेश्वर हैं और पूज्य हैं। भक्ति के माध्यम से जीव उनसे शाश्वत सम्बद्ध है।

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10.

अध्याय 10: श्रीभगवान् का ऐश्वर्य

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11.

भगवद्-गीता  »  अध्याय 11: विराट रूप  »    अध्याय 11: विराट रूप   भगवान् कृष्ण अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं ।

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12.

अध्याय 12: भक्तियोग   कृष्ण के शुद्ध प्रेम को प्राप्त करने का सबसे सुगम एवं सर्वोच्च साधन भक्तियोग है।

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13.

अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना   जो व्यक्ति शरीर, आत्मा तथा इनसे भी परे परमात्मा के अन्तर को समझ लेता है,

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14.

अध्याय 14: प्रकृति के तीन गुण   सारे देहधारी जीव भौतिक प्रकृति के तीन गुणों के अधीन हैं—ये हैं सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण। कृष्ण बतलाते हैं !

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15.

अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग   वैदिक ज्ञान का चरम लक्ष्य अपने आपको भौतिक जगत के पाश से विलग करना तथा कृष्ण को भगवान् मानना है।

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16.

अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव

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17.

अध्याय 17: श्रद्धा के विभाग   भौतिक प्रकृति के तीन गुणों से तीन प्रकार की श्रद्धा उत्पन्न होती है।

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18.

अध्याय 18: उपसंहार—संन्यास की सिद्धि   कृष्ण वैराग्य का अर्थ और मानवीय चेतना तथा कर्म पर प्रकृति के गुणों का प्रभाव समझाते हैं।

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19.

भगवद्-गीता  »  भूमिका  भूमिका  play_arrow pause  ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: ॥

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20.

आमुख    सर्वप्रथम मैंने भगवद्गीता यथारूप इसी रूप में लिखी थी जिस रूप में अब यह प्रस्तुत की जा रही है।

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