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उर्वशी-उर्वशी

3.9
3082

विलसत सान्ध्य दिवाकर की किरनैं माला सी। प्रकृति गले में जो खेलति है बनमाला सी।। तुंग लसैं गिरिशृंग भर्यो कानन तरुगन ते। जिनके भुज मैं अरुझि पवनहू चलत जतन ते।। निर्भय औ स्वच्छन्द जहाँ पै खग मृग डोलत। ...

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उर्वशी-2
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जयशंकर प्रसाद
4.7

उद्यान-देश की रमणीक शैल-माला, आय्र्यावर्त की उत्तर-सीमा के फल-फूल से लदे हुए कानन की शोभा, किस नेत्र को चकित नहीं करती। मृगयाविहारी युवक राजा पुरुरवा मुग्ध होकर एक शिलाखण्ड पर बैठे हुए वनश्री देख रहे ...

लेखक के बारे में
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जयशंकर प्रसाद
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Krishna Awasthi
    05 मार्च 2019
    बहुत अच्छी लेकिन पढ़ने वाले की हिंदी वाकई अच्छी होनी चाहिए कथ्य से बेहतर शिल्प है
  • author
    Nirmala Choudhary
    15 सितम्बर 2018
    👌
  • author
    Ravi
    25 मई 2017
    लाज़वाब
  • author
    आपकी रेटिंग

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  • author
    Krishna Awasthi
    05 मार्च 2019
    बहुत अच्छी लेकिन पढ़ने वाले की हिंदी वाकई अच्छी होनी चाहिए कथ्य से बेहतर शिल्प है
  • author
    Nirmala Choudhary
    15 सितम्बर 2018
    👌
  • author
    Ravi
    25 मई 2017
    लाज़वाब