बनारस बस एक शहर नहीं है सुकून है वो मेरा जहां रात में अस्सी घाट की सीढ़ियों पर बैठ कर मुझे चांद की चांदनी को गंगा की लहरों में मिलते हुए देखना है। मर्णिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं को देख अपने मन ...
बहुत खूब नीतू बहन।
आदरणीय ,
प्रतिलिपि के इस मंच में प्रतिदिन हम सभी लोग कुछ रचनाएं लिखते हैं, कुछ दूसरों की हैं ।
इसी तरह इस ज्ञान की गंगा में हम लोग साथ साथ गंगा में विसर्जित रौशन दिए की तरह बहते आगे बढ़ते जाते हैं।
आप भी ज्ञान का एक दीपक हैं।
मेरे जैसे इस छोटे दीपक ने आपसे कुछ उजाला ले लिया है और अपनी रोशनी को थोड़ा और ने निखार लिया है।
बहुत अच्छा लिखने के लिए आपको हृदय तल से बधाई होआदरणीय।
धन्यवाद
"शिवा"
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मेरे जैसे इस छोटे दीपक ने आपसे कुछ उजाला ले लिया है और अपनी रोशनी को थोड़ा और ने निखार लिया है।
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