<div>शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का मशहूर उपन्यास श्रीकांत, श्रीकांत नाम के एक युवक की कहानी है। श्रीकांत की किशोरावस्था से लेकर उसकी जवानी तक की इस कहानी मेँ नदी किनारे बसे हुए एक छोटे से गांव ...
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श्रीकांत-अध्याय 2
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4.8
पैर उठते ही न थे, फिर भी किसी तरह गंगा के किनारे-किनारे चलकर सवेरे लाल ऑंखें और अत्यन्त सूखा म्लान मुँह लेकर घर पहुँचा। मानो एक समारोह-सा हो उठा। ''यह आया! यह आया!'' कहकर सबके सब एक साथ एक स्वर में ...
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शरत चन्द्र ने इसे 16 साल में पूरा लिखा था। शरत चन्द्र ने इस उपन्यास को 4 भाग में लिखा। पहला भाग 1917 में आया तो चौथा भाग 1933 में आया। शरत लिखते हैं कि 20 साल तक इन्होंने इसकी कहानी पर काम किया। इसे ही मास्टरपीस कहते हैं। शरत जी की ओर मेरी आदत में एक समानता है , वो ये की मैं भी उनकी तरह असली किरदारों पर काल्पनिक कहानी लिखता हूँ। इस उपन्यास में श्रीकांत स्वयं शरत ही थे। इंद्रनाथ भी उसका असल लँगोटिया यार था, अनन्दा , रोहिणी , अभय , राजलक्ष्मी ... ये सारे ओरिजिनल में शरत के दोस्त थे। उनको नाम बदल कर इस कहानी में शामिल किया गया। ये कहानी एक यात्रा वृतांत भी कह सकते हैं। श्रीकांत काफी घुम्मकड़ किरदार है। उपन्यास के किसी न किसी पात्र से आपको गहरा लगाव जरूर हो जाएगा । पर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इस उपन्यास के कुल 20 अध्याय है जिसमे से 19 ही दिए गए हैं। पाठक जिन्हें अंत को जानना है वो इस लिंक पर पढ़ सकते हैं। http://hindisamay.com/upanyas/shrikant/shrikant-20.htm
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शरत जी की कहानी के हम समीक्षक नहीं हो सकते हैं। वे एक महान कहानीकार थे । श्रीकांत एक महान उपन्यास है । पढ़ते वक्त लगता है कि मैं इस उपन्यास का एक पात्र हूं । मैं अपने आप को इससे जुड़ा हुआ पाती हूं । जब भी मौका मिलता है मैं इसे दोबारा पढ़ना शुरू कर देती हूं । पता नहीं आज तक कितनी बार पढ़ चुकी हूं ।
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श्रीकांत एक कालजयी रचना है जोकि बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश से लेकर बर्मा तक के तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक ,धार्मिक और आर्थिक जीवन तथा लोक परंपराओं का दर्पण है।
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शरत चन्द्र ने इसे 16 साल में पूरा लिखा था। शरत चन्द्र ने इस उपन्यास को 4 भाग में लिखा। पहला भाग 1917 में आया तो चौथा भाग 1933 में आया। शरत लिखते हैं कि 20 साल तक इन्होंने इसकी कहानी पर काम किया। इसे ही मास्टरपीस कहते हैं। शरत जी की ओर मेरी आदत में एक समानता है , वो ये की मैं भी उनकी तरह असली किरदारों पर काल्पनिक कहानी लिखता हूँ। इस उपन्यास में श्रीकांत स्वयं शरत ही थे। इंद्रनाथ भी उसका असल लँगोटिया यार था, अनन्दा , रोहिणी , अभय , राजलक्ष्मी ... ये सारे ओरिजिनल में शरत के दोस्त थे। उनको नाम बदल कर इस कहानी में शामिल किया गया। ये कहानी एक यात्रा वृतांत भी कह सकते हैं। श्रीकांत काफी घुम्मकड़ किरदार है। उपन्यास के किसी न किसी पात्र से आपको गहरा लगाव जरूर हो जाएगा । पर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इस उपन्यास के कुल 20 अध्याय है जिसमे से 19 ही दिए गए हैं। पाठक जिन्हें अंत को जानना है वो इस लिंक पर पढ़ सकते हैं। http://hindisamay.com/upanyas/shrikant/shrikant-20.htm
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श्रीकांत एक कालजयी रचना है जोकि बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश से लेकर बर्मा तक के तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक ,धार्मिक और आर्थिक जीवन तथा लोक परंपराओं का दर्पण है।
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