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श्राप

4.9
2313

बड़ी हवेली आज भी उसी ठसक के साथ खड़ी थी,सँगीत की लहरी आज भी ऊपर वाले  कमरे के झरोखों से बाहर की ओर भटकी भटकी गूँजती। छत के  कँगूरों में रोज़  कभी चूनर लटकी मिलती,तो कभी ग़ज़रा मगर बड़ी हवेलियों के सीने ...

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Sumitaa Sharma
4.9

उधर हवेली में चन्दा के स्वागत की तैयारियां चल रहीं थीं,दहेज में आये खूबसूरत पलँग को रेशमी चादर बिछाकर  हवेली के साथ साथ उस पूरे कमरे को  विशेष रूप से फूलों से सजाया गया था। महिलाएं घर में महफ़िल जमाये ...

लेखक के बारे में
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Sumitaa Sharma

सूरज हूँ जिन्दगी की रमक छोड़ जाऊँगा, मैं डूब भी गया तो चमक छोड़ जाऊँगा

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manju Sinha "M S"
    07 अक्टूबर 2022
    काफी सधी हुई रचना....बहुत ही बढ़िया है
  • author
    Pushplata Nagar
    29 अगस्त 2022
    सुंदर लेखन शैली 🌺👍🌺
  • author
    Arya Jha
    22 मई 2021
    गजब लिखती हो। लेखनी को सलाम!!
  • author
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  • author
    Manju Sinha "M S"
    07 अक्टूबर 2022
    काफी सधी हुई रचना....बहुत ही बढ़िया है
  • author
    Pushplata Nagar
    29 अगस्त 2022
    सुंदर लेखन शैली 🌺👍🌺
  • author
    Arya Jha
    22 मई 2021
    गजब लिखती हो। लेखनी को सलाम!!