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सदा सुहागन

4.6
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रीत ने पर्स को मोड़ कर ज्यों का त्यों रख दिया।अनायास ही उस का हाथ सूटकेस की पौकेट में चला गया। इस पौकेट में राघव द्वारा लाई लहठी (एक प्रकार की चूड़ी) रखी थीं जो कुछ दिनों पहले वह रीत के लिए लाया था। लेकिन अब वह इन लहठियों का क्या करेगी? किस के लिए पहनेगी अब? कौन देखने वाला है इन्हें? किसके लिए इन्हें पहनकर सजेगी। जो चाव से ले कर आया था अब वही नहीं रहा।ये सब चीजें तो सुहागनों के लिए होती हैं न, वह तो अब सुहागन भी नहीं रही। उसे याद आने लगा था कि कैसे कभी कभी राघव अपना प्यार जताने के लिए उसे ...

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Kavya

लफ्ज़ मेरी पहचान बने तो बेहतर है ☺️ चेहरे का क्या वो तो साथ चला जाएगा ☺️☺️

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Seema Garg
    20 अक्टूबर 2021
    ओह बेहद मार्मिक चित्रण किया आपने कहानी में। बेचारी रीत अपने पति के बिना यह पहाड़ सी जिंदगी कैसे काट सकेगी। पीहू को भी पिता का प्यार चाहिए। बेहतरीन अभिव्यक्ति आपकी
  • author
    06 जुलाई 2021
    स्त्री की जीवन की एक दर्दनाक हिस्सा। आपकी कहानी ने रूला दिया ।
  • author
    19 सितम्बर 2021
    बहुत सुंदर लिखा आप ने ✍️👌👌👌🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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    Seema Garg
    20 अक्टूबर 2021
    ओह बेहद मार्मिक चित्रण किया आपने कहानी में। बेचारी रीत अपने पति के बिना यह पहाड़ सी जिंदगी कैसे काट सकेगी। पीहू को भी पिता का प्यार चाहिए। बेहतरीन अभिव्यक्ति आपकी
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    06 जुलाई 2021
    स्त्री की जीवन की एक दर्दनाक हिस्सा। आपकी कहानी ने रूला दिया ।
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    19 सितम्बर 2021
    बहुत सुंदर लिखा आप ने ✍️👌👌👌🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹