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मुर्दे की जान खतरे में-1

4.4
55398

अशोक विहार की कोठी में जब मैंने कदम रखा तो उस समय बंसल साहब की लाश ड्राइंग रूम में बिलकुल बीचोंबीच पड़ी हुई थी। पुलिस की फोरेंसिक टीम अपने काम में लगी हुई थी और फोटोग्राफर लाश के विभिन्न एंगल से फोटो लेने में लगा हुआ था। मै अभी लाश की तरफ बढ़ ही रहा था कि एक पुलिसिये ने मेरा रास्ता रोक दिया। वो सब इंस्पेक्टर चौहान था जो पता नही क्यों मुझ से कुछ ज्यादा ही खुंदक खाता था। "तुम्हे क्या घर बैठे लाश की स्मेल आ जाती है क्या जो हर जगह पहुंच जाते हो अपनी टांग अड़ाने"चौहान जलेभुने स्वर में बोला। "जाओ चौहान ...

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मुर्दे की जान खतरे में -2
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अनिल गर्ग
4.5

जब मै इंस्पेक्टर शर्मा के पास थाने पहुंचा तब शाम के 7 बज चुके थे। अशोक बंसल की हत्या की दिन भर की दुश्वारियो से निपट कर शर्मा जी बस अपने रूम में बैठे ही थे की मै उनके पास पहुंच गया।शर्मा जी मुझे ...

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अनिल गर्ग

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समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Subhash Nangia
    26 ആഗസ്റ്റ്‌ 2019
    आप के लेखन में प्रसिद्ध रहस्य रोमान्च लेखक श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की झलक मिलती है ,अब पता नहीं आप उनसे प्रभवित हैं या एक संयोग है।
  • author
    23 ഒക്റ്റോബര്‍ 2019
    पहले भाग मे ऐसा कुछ नही हुआ जो मेरे अंदर जिज्ञासा जगाए आगे पढ़ने के लिए। साथ ही यह अकड़ू पुलिस और जासूस की तनातनी भी काफी बार इस्तेमाल हो चुका है। और न चाहकर भी मुझे अनुज मे से सुनील चक्रवर्ती की बू आ रही है। पर यह शुरुआत है, आगे ही पता चलेगा सब।
  • author
    Sheetanshu Tripathi
    24 മാര്‍ച്ച് 2021
    आपने सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की नकल ही की है, अभी कुछ दिन पढ़ने की आदत डालें, लिखने का काम कुछ दिन के लिए छोड़ दें, अभी आपको बहुत कुछ सीखना है, नकल करने से स्थाई प्रसिद्धि नहीं मिलती
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    Subhash Nangia
    26 ആഗസ്റ്റ്‌ 2019
    आप के लेखन में प्रसिद्ध रहस्य रोमान्च लेखक श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की झलक मिलती है ,अब पता नहीं आप उनसे प्रभवित हैं या एक संयोग है।
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    23 ഒക്റ്റോബര്‍ 2019
    पहले भाग मे ऐसा कुछ नही हुआ जो मेरे अंदर जिज्ञासा जगाए आगे पढ़ने के लिए। साथ ही यह अकड़ू पुलिस और जासूस की तनातनी भी काफी बार इस्तेमाल हो चुका है। और न चाहकर भी मुझे अनुज मे से सुनील चक्रवर्ती की बू आ रही है। पर यह शुरुआत है, आगे ही पता चलेगा सब।
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    Sheetanshu Tripathi
    24 മാര്‍ച്ച് 2021
    आपने सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की नकल ही की है, अभी कुछ दिन पढ़ने की आदत डालें, लिखने का काम कुछ दिन के लिए छोड़ दें, अभी आपको बहुत कुछ सीखना है, नकल करने से स्थाई प्रसिद्धि नहीं मिलती