जब कभी उस गांव में लौटती हूँ, (जहां मेरा बचपन बीता था।) तब भले ही पक्की सड़कों का बदलाव ब मिले पर उसके नीचे दबी उस कच्ची राह को आभास हो ही जाता है कि वही भटका पदचिन्ह लौटा है जो वर्षों पहले यहाँ ...
बहुत ही उम्दा.. बचपन में मेंने भी 26 जनवरी और 15 अगस्त पर बहुत से कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है.. भगत सिंह भी बना था 2 नाटकों मे.. आपने सारी यादे ताजा कर दी.. आपको बहुत बहुत शुक्रिया.. 🙏🙏👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻 ऐसे ही लिखते रहिए
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