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मैं हिमालय बोला रहा हूँ।

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कविता-"मैं हिमालय बोल रहा हूँ।" अपनें आँचल में खिलतें-बुझते, इतिहासों को तोल रहा हूँ। मैं हिमालय बोल रहा हूँ। ना जानें किस युग से , मैं अखण्ड खड़ा हूँ, इस भारत भू पर , ना जानें किस क्षण से हूँ, ...

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जीवन और मृत्यु।
जीवन और मृत्यु।
अटल पैन्यूली
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लेखक के बारे में
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अटल पैन्यूली

M.SC BOTANY (BOTANIST) PGDYS(YOGACARYA) B.Ed(SIKASA SASTRI) CAMOND ON 4 LENGUAGE HINDI ENGLISH SANSKRIT UTTARAKHAND REGNOL LENGUAGE Reading the biography is my favourite. NIVAS- KEDARKHAND ( THE LEND OF SHIV, VISHNU AND SAKTI)

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manju Pant
    24 जून 2020
    वाह बहुत ओजपूर्ण कविता ।मै ही रूद्र हूँँ मैही काल हूँँ सुन्दर शब्द। मुबारक ।🌷🙏🏻🌷
  • author
    Chandra Mani Iyer
    24 जून 2020
    वीर रस से ओत-प्रोत सार्थक रचना !!👌👌👍🙏🏻
  • author
    24 जून 2020
    वाहहहहहह। बहुत ही शानदार और औजपूर्ण रचना 🙏🙏
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    Manju Pant
    24 जून 2020
    वाह बहुत ओजपूर्ण कविता ।मै ही रूद्र हूँँ मैही काल हूँँ सुन्दर शब्द। मुबारक ।🌷🙏🏻🌷
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    Chandra Mani Iyer
    24 जून 2020
    वीर रस से ओत-प्रोत सार्थक रचना !!👌👌👍🙏🏻
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    24 जून 2020
    वाहहहहहह। बहुत ही शानदार और औजपूर्ण रचना 🙏🙏