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लोहा लोहे को काटता है

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लोहा लोहे को काटता है मैंने देखा है अपनी आँखों से बार बार प्रहारों , चोटों से आ जाती है लोहे मे भी विकृतियां पड़ जाती है दरारें बदल जाता है फिर उसका रूप स्वरूप से हटकर मुझे विकृतियाँ कहीं अलग ...

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राहुल सिंह "राही"
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लेखक के बारे में
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राहुल सिंह

अच्छी बुरी जैसी भी दुनिया है मेरे शब्द ही मेरी दुनिया हैं सारा जहां सिमटा है कलम की नोक पर जो वाकी वो तो बेचारी दुनिया है ।।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Anita Yadav
    13 मई 2021
    बिलकुल सही कहा आपने मन को छूती रचना लिखी है आपने
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    Anita Yadav
    13 मई 2021
    बिलकुल सही कहा आपने मन को छूती रचना लिखी है आपने