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कुंठित मन सत्य कथा पर आधारित

4.6
2819

एक ऐसा सत्य जो आपके आत्मा को झकजोर कर रख देगा ।जो एक एक अक्षरतः सच है एक ऐसी दस्तान जो आपको हिला रख देगी

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कुंठित मन भाग 2 सत्यकथा पर आधारित
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Kiran Singh
4.8

कुंठित मन भाग 2            इस कहानी को समझने के लिए कुंठित मन भाग 1 जरूर पढ़े देव ने बहुत परेशानियां झेली थी। उसके माता पिता बचपन में एक आपदा के तहत चल बसे थे। उसकी जगह अगर कोई और होता तो शायद जिंदा ...

लेखक के बारे में
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Kiran Singh

एम.ए .एल एल बी. फैमली कोर्ट निशुल्क महिला सलाहकार

समीक्षा
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  • author
    Rajender K Guru
    21 जून 2019
    आपकी कहानी ने रुला दिया मांजी। पहले लेखक के माता पिता की मृत्यु। फिर बड़े भाई साहब और मँझले भाई साहब के यहाँ यातनाएं सहना। भाभी का व्यवहार सच में अमानवीय था।लेकिन बहन ने बहुत साथ दिया। लेखक का डॉक्टर बन जाना उसकी कड़ी मेहनत और लगन का परिणाम था। वह जो भी अपनी पत्नी के साथ करता था वो अपने भूतकाल की वजह से ही करता था। इंसान अपने पास्ट से चाहे जितना भाग ले लेकिन वह भाग नहीं सकता। कुछ ऐसा ही इस कहानी में कहा गया है। बचपन में मिले दर्द हमारे मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ देते हैं ना जाने मुझे ऐसा क्यों लगा की यह मेरी ही कहानी है। रुलाने के लिए आपका dhnyvaad😢😢😢💐
  • author
    25 अक्टूबर 2019
    निःशब्द हूँ । अगर ये सत्य घटना पर आधारित है तो नायक ने कितना सहा होगा ये सोच कर मन द्रवित हो रहा है । कहानी इतनी सजीव है कि मुझे तो लग रहा है कि आपने अपनी ही आपबीती सुना दी । बस दर्द को जी रही हूँ ।
  • author
    27 सितम्बर 2019
    ये ज़िन्दगी है ,न जाने किन किन मोड़ों पर गुजरना पड़े,लेकिन ऐसे माहोल में डॉ बन जाना किसी चमत्कार से कम नहीं है।इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने पढ़ाई में योगदान दिया
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    Rajender K Guru
    21 जून 2019
    आपकी कहानी ने रुला दिया मांजी। पहले लेखक के माता पिता की मृत्यु। फिर बड़े भाई साहब और मँझले भाई साहब के यहाँ यातनाएं सहना। भाभी का व्यवहार सच में अमानवीय था।लेकिन बहन ने बहुत साथ दिया। लेखक का डॉक्टर बन जाना उसकी कड़ी मेहनत और लगन का परिणाम था। वह जो भी अपनी पत्नी के साथ करता था वो अपने भूतकाल की वजह से ही करता था। इंसान अपने पास्ट से चाहे जितना भाग ले लेकिन वह भाग नहीं सकता। कुछ ऐसा ही इस कहानी में कहा गया है। बचपन में मिले दर्द हमारे मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ देते हैं ना जाने मुझे ऐसा क्यों लगा की यह मेरी ही कहानी है। रुलाने के लिए आपका dhnyvaad😢😢😢💐
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    25 अक्टूबर 2019
    निःशब्द हूँ । अगर ये सत्य घटना पर आधारित है तो नायक ने कितना सहा होगा ये सोच कर मन द्रवित हो रहा है । कहानी इतनी सजीव है कि मुझे तो लग रहा है कि आपने अपनी ही आपबीती सुना दी । बस दर्द को जी रही हूँ ।
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    27 सितम्बर 2019
    ये ज़िन्दगी है ,न जाने किन किन मोड़ों पर गुजरना पड़े,लेकिन ऐसे माहोल में डॉ बन जाना किसी चमत्कार से कम नहीं है।इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने पढ़ाई में योगदान दिया