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हिन्दी

जुरमाना-जुरमाना

4.5
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ऐसा शायद ही कोई महीना जाता कि अलारक्खी के वेतन से कुछ जुरमाना न कट जाता। कभी-कभी तो उसे ६) के ५) ही मिलते, लेकिन वह सब कुछ सहकर भी सफाई के दारोग़ा मु० खैरात अली खाँ के चंगुल में कभी न आती। खाँ साहब ...

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जुरमाना-२
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मुंशी प्रेमचंद
4.5

सन्ध्या समय हुसेनी और अलारक्खी दोनों तलब लेने चले। अलारक्खी बहुत उदास थी। हुसेनी ने सान्त्वना दी-तू इतनी उदास क्यों है? तलब ही न कटेगी-काटने दे अबकी से तेरी जान की कसम खाता हूँ, एक घूँट दारू या ताड़ी ...

लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ritesh Rajput
    16 मार्च 2018
    ऐसा सिर्फ मुंशी जी ही कर सकते हैं घटना को आंखों के सामने ला दे.
  • author
    हरि ओम शर्मा
    24 जनवरी 2020
    मानव मनोविज्ञान पर मुंशीजी की गहरी पकड़ थी ।
  • author
    Madhu Dewangan
    30 मई 2019
    कभी कभी मनुष्य के व्यवहार को समझना मुश्किल होता है।
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    Ritesh Rajput
    16 मार्च 2018
    ऐसा सिर्फ मुंशी जी ही कर सकते हैं घटना को आंखों के सामने ला दे.
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    हरि ओम शर्मा
    24 जनवरी 2020
    मानव मनोविज्ञान पर मुंशीजी की गहरी पकड़ थी ।
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    Madhu Dewangan
    30 मई 2019
    कभी कभी मनुष्य के व्यवहार को समझना मुश्किल होता है।