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एक दूजे के वास्ते

4.7
20297

“ हे , तीखी मिर्ची उठो न? तुम्हें कुछ नहीं होगा , सुन रही हो? होश में आओ।” आदित्य लगातार आरोही को होश में लाने की कोशिश करता है लेकिन आरोही की आँखें अभी भी बंद थी , उसके चेहरे पर आग की वजह कुछ काले धब्बे लग गए थे फिर भी उसकी मासूमियत कम नहीं हुई थी। आदित्य उसे एकटक देखने में लगा था। ऐसा लगा मानो जैसे वो भूल ही गया है कि वो दोनों किसी बड़ी मुसीबत में फँसे हैं।  पर भगवान उनके साथ था। फायर ब्रिगेड की गाड़ी आ चुकी थी और आग भी अब काम होने लगी थी। आदित्य ने किसी तरह खुद के पैर पर गिरे समान को हटा कर ...

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एक दूजे के वास्ते
Muskan Kumari
4.4
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लेखक के बारे में
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Muskan Kumari

अल्हड़ सी जवानी हूँ, सोच से नई न पुरानी हूँ, प्यार के किस्से गढ़ती हूँ, अल्फाज़ो से लड़ती हूँ ; हँसी ही मेरी पहचान है , मेरा नाम मुस्कान है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Janki Pandey
    03 जून 2025
    👍👍👍👍 aapki Kahani acchi hai
  • author
    Ridham Jagotra
    04 जून 2025
    mind blowing
  • author
    Seema Soni
    03 जून 2025
    nice👍👍👍👍👍
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  • author
    Janki Pandey
    03 जून 2025
    👍👍👍👍 aapki Kahani acchi hai
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    Ridham Jagotra
    04 जून 2025
    mind blowing
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    Seema Soni
    03 जून 2025
    nice👍👍👍👍👍