बचपन के बारिश और कागज की नाव: इंग्लिश मीडियम छुट्टी भी चल रही है और गांँव से निमंत्रण आया है। भतीजी की शादी है इसलिए मना करने का सवाल ही नहीं उठता। आखिर सगी भतीजी की शादी में भी शामिल नहीं हो ...
"जल बिच मीन पियासी" अब पुस्तक के रूप में amezon पर उपलब्ध।
💐चाहें हम रहें न रहें,ये भाव हमारे रह जाएँगे।
जब-जब पढ़ेंगे लोग हमें,हम याद उन्हें आ जाएँगे।💐
https://youtu.be/7Io3xh-AHBA
youtube पर मेरी कविताएँ और कहानियाँ सुने मेरी आवाज में ।
सारांश
"जल बिच मीन पियासी" अब पुस्तक के रूप में amezon पर उपलब्ध।
💐चाहें हम रहें न रहें,ये भाव हमारे रह जाएँगे।
जब-जब पढ़ेंगे लोग हमें,हम याद उन्हें आ जाएँगे।💐
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क्या कहूं मैं इस कहानी के बारे में कुछ समझ नहीं आ रहा है,,,मुझे मेरे इंग्लिश मीडियम स्कूल की याद आ गई। लगा जैसे मेरी ही कहानी मुझी से कहीं जा रही है... मै भी बिलकुल इसी तरह नितांत अकेला गुमसुम सा पूरे एकसाल तक रहा, या यूं कहूं की जो मैं असल में था, वह रहा ही नही...पूरे एक साल तक डर, आत्मग्लानि, आत्मसंशय और तिरस्कार झेलता रहा जबकि अपने गांव में मैं आदर्श था मेरे हम उम्र लडको का... इतना सबकुछ चुपचाप सहन करते रहने का परिणाम ये हुआ कि मै हिंसक हो गया.... किसी को भी कुछ भी उठाकर मार देना, गालियां देना, शहर भर के गुंडों के साथ रोज का उठना बैठना शुरू हो गया। रोज ही कोई ना कोई लड़ाई होती थी... पुलिस तक भी बाते पहुंची, मगर छोटा था तो बच गया।। फिर जब गांव आता तो मुझे अहसास होता की यार मै गलत लाइन में पहुंच गया हूं, मेरा स्वभाव ये नहीं है, ये सब मुझे नहीं करना है, धीरे धीरे ये विचार पक्के होने लगे, फिर कुछ अच्छा साहित्य पढ़ा, इसी के साथ एक मेरे मित्र के दादाजी का मेरे प्रति स्नेह देखकर परिवर्तन शुरू हुआ.... पर वापस से मुझे मेरे असली स्वभाव को पाने के लिए लगभग एक साल लगा । अब मुझे वो लोग भी पसंद करने लगे थे जिनको मुझसे डर लगता था, और साथ ही वे लोग भी जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे। अब जब ये सब हुआ उसके बाद उन गुजरे पलो को याद करते हुए भोलेनाथ का धन्यवाद ज्ञापित करता हूं कि उन्होंने मुझे उस समय इस दलदल में फसने से बचा लिया, और आज मै मेरी जिंदगी से बड़ा खुश हूं।
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कहानी को पढ़कर बचपन की सारी यादें एकाएक दिल में उतरने लगी लेकिन लास्ट में कहानी की भाषा थी वह अटपटी थी और ज्यादा समझ में नहीं आ रही थी कृपया उसे लास्ट में भाषा को एडिट करके कहानी पूर्ण करने की कृपा करें
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क्या कहूं मैं इस कहानी के बारे में कुछ समझ नहीं आ रहा है,,,मुझे मेरे इंग्लिश मीडियम स्कूल की याद आ गई। लगा जैसे मेरी ही कहानी मुझी से कहीं जा रही है... मै भी बिलकुल इसी तरह नितांत अकेला गुमसुम सा पूरे एकसाल तक रहा, या यूं कहूं की जो मैं असल में था, वह रहा ही नही...पूरे एक साल तक डर, आत्मग्लानि, आत्मसंशय और तिरस्कार झेलता रहा जबकि अपने गांव में मैं आदर्श था मेरे हम उम्र लडको का... इतना सबकुछ चुपचाप सहन करते रहने का परिणाम ये हुआ कि मै हिंसक हो गया.... किसी को भी कुछ भी उठाकर मार देना, गालियां देना, शहर भर के गुंडों के साथ रोज का उठना बैठना शुरू हो गया। रोज ही कोई ना कोई लड़ाई होती थी... पुलिस तक भी बाते पहुंची, मगर छोटा था तो बच गया।। फिर जब गांव आता तो मुझे अहसास होता की यार मै गलत लाइन में पहुंच गया हूं, मेरा स्वभाव ये नहीं है, ये सब मुझे नहीं करना है, धीरे धीरे ये विचार पक्के होने लगे, फिर कुछ अच्छा साहित्य पढ़ा, इसी के साथ एक मेरे मित्र के दादाजी का मेरे प्रति स्नेह देखकर परिवर्तन शुरू हुआ.... पर वापस से मुझे मेरे असली स्वभाव को पाने के लिए लगभग एक साल लगा । अब मुझे वो लोग भी पसंद करने लगे थे जिनको मुझसे डर लगता था, और साथ ही वे लोग भी जो मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे। अब जब ये सब हुआ उसके बाद उन गुजरे पलो को याद करते हुए भोलेनाथ का धन्यवाद ज्ञापित करता हूं कि उन्होंने मुझे उस समय इस दलदल में फसने से बचा लिया, और आज मै मेरी जिंदगी से बड़ा खुश हूं।
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