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आकाशदीप-आकाशदीप

4.5
9797

‘‘बन्दी!’’ ‘‘क्या है? सोने दो।’’ ‘‘मुक्त होना चाहते हो?’’ ‘‘अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।’’ ‘‘फिर अवसर न मिलेगा।’’ ‘‘बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डालकर कोई शीत से मुक्त करता।’’ ‘‘आँधी की ...

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आकाशदीप-2
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जयशंकर प्रसाद
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अनन्त जलनिधि में ऊषा का मधुर आलोक फूट उठा। सुनहली किरणों और लहरों की कोमल सृष्टि मुस्कराने लगी। सागर शान्त था। नाविकों ने देखा, पोत का पता नहीं। बन्दी मुक्त हैं। नायक ने कहा-‘‘बुधगुप्त! तुमको मुक्त ...

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जयशंकर प्रसाद
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    21 மே 2017
    इस कहानी की कोई मिशाल नही। अद्भुत, अप्रतिम। जयशंकर प्रसाद की कल्पना का मास्टर स्ट्रोक!
  • author
    विजय सिंह "बैस"
    09 ஆகஸ்ட் 2019
    अद्भुत कल्पना शक्ति ।
  • author
    Satyam Tiwari
    23 ஜனவரி 2019
    bahut hi sunder
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  • author
    21 மே 2017
    इस कहानी की कोई मिशाल नही। अद्भुत, अप्रतिम। जयशंकर प्रसाद की कल्पना का मास्टर स्ट्रोक!
  • author
    विजय सिंह "बैस"
    09 ஆகஸ்ட் 2019
    अद्भुत कल्पना शक्ति ।
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    Satyam Tiwari
    23 ஜனவரி 2019
    bahut hi sunder