साल ये बड़ा सुहाना, बदला-बदला सा आशियाना, इस बंजर ज़मीन मे तू कैद, महसूस करते हुए बीत गया ज़माना, कलयुगी ये दौर, यहां ना कुदरत का ठिकाना, सीधा बनने में मसरूफ सब, इंसान हि इंसान का दाना, मैं जो ...
आप केवल प्रतिलिपि ऐप पर कहानियाँ डाउनलोड कर सकते हैं
एप्लिकेशन इंस्टॉल करें
अपने दोस्तों के साथ साझा करें:
पुस्तक का अगला भाग यहाँ पढ़ें
१०० वर्ष (Part-2)
Dhruv Dev Bhardwaj "Dev"
5
छुप गई वो नन्ही किलकारी, रह गई अकेली वो नन्ही बेचारी, सजाया था बचपन में आन्घन वो सपनों का, साल बदलते मुरझा गयी वो हरियाली, मज़ार के किनारे मेरी वो, बड़े वृक्ष कि छ़ाव जो टकराई, मिल गईं होंगी ...
आप केवल प्रतिलिपि ऐप पर कहानियाँ डाउनलोड कर सकते हैं
रिपोर्ट की समस्या
रिपोर्ट की समस्या