तब खिड़की से आए हवा के एक झोंके ने ... तुम्हारे गालो पर फैले जुल्फों के पर्दे को हटा दिया था.......और उसी झोंके के साथ मेरा बावरा मन भी उड़ चला था तुम्हारी ओर... बस तभी मेरी पहली पूर्णिमा हुई थी ...
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हवा का झोंका-हवा का झोंका - 2
अविनाश तिवारी "अविकाव्य"
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रजत यहीं नाम है मेरा और तुम योग्यता,अब तुम्हारा नाम ही योग्यता है तो तुम्हे पाने के लिए.......रजत को योग्य तो होना ही पड़ेगा। फिर क्या था चल पड़े रजत और आयुष्मान अपनी क्लास क्या पुरे कॉलेज के गूगल बाबा ...
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"चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते है बंद आँखों की बातो को,अल्हड़ से इरादों को, कोरे कागज पर उतारेंगे अंतर्मन को थामकर,बाते उसकी जानेगे चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते हैं.."
सारांश
"चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते है बंद आँखों की बातो को,अल्हड़ से इरादों को, कोरे कागज पर उतारेंगे अंतर्मन को थामकर,बाते उसकी जानेगे चल अविनाश अब चलते है मन की उड़ान हम भरते हैं.."
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