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लफ्ज

4.5
1078

जब दिल का दर्द अपनी हद पार कर जाता है, तो अक्सर वो पन्नो पर आ जाता है ...........

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लफ्ज -२
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शुभेन्द्र सिंह "संन्यासी"
4.7

दिल तो शरीफ था मेरा तेरा ही दिल कातिल निकला मैं तो था कांच का एक प्यारा सा घर तू ही हाथ में पत्थर लेने वाला मुसाफिर निकला तेरा मुस्कुराना और फिर रूठ जाना फिर यह कहना की मुझको भूल जाना बस तेरी ...

लेखक के बारे में

अक्षर से शब्द तक अंत से प्रारब्ध तक तुम ही तुम हो.....

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ujjwal सिंह "Ujju"
    23 जुलाई 2017
    बहुत खूब सजाया आप्ने लब्जो को चन्द शब्दो मे, काश कि उन्हें भी ये पढ़ना आ जाता, मुक्कमल हो जाती आप्की हर ख्वाइसे, अगर उन्हे आपका दिदार करना आ जाता.
  • author
    Anurag Chaturvedi "ARC"
    04 जुलाई 2019
    adbhut ⭐ ⭐⭐⭐⭐ aap meri nyi rachna alfaj per apni partikriya de
  • author
    Adhyayan Gandhi
    15 जुलाई 2017
    सही है भाई साहब ।।।।।। लगे रहो।।।।,,,,,,,😣👍👍👍👍👍👍👌👏👏👏👏👏✌✌✌✌
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ujjwal सिंह "Ujju"
    23 जुलाई 2017
    बहुत खूब सजाया आप्ने लब्जो को चन्द शब्दो मे, काश कि उन्हें भी ये पढ़ना आ जाता, मुक्कमल हो जाती आप्की हर ख्वाइसे, अगर उन्हे आपका दिदार करना आ जाता.
  • author
    Anurag Chaturvedi "ARC"
    04 जुलाई 2019
    adbhut ⭐ ⭐⭐⭐⭐ aap meri nyi rachna alfaj per apni partikriya de
  • author
    Adhyayan Gandhi
    15 जुलाई 2017
    सही है भाई साहब ।।।।।। लगे रहो।।।।,,,,,,,😣👍👍👍👍👍👍👌👏👏👏👏👏✌✌✌✌