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लफ्ज -२
शुभेन्द्र सिंह "संन्यासी"
4.7
दिल तो शरीफ था मेरा तेरा ही दिल कातिल निकला मैं तो था कांच का एक प्यारा सा घर तू ही हाथ में पत्थर लेने वाला मुसाफिर निकला तेरा मुस्कुराना और फिर रूठ जाना फिर यह कहना की मुझको भूल जाना बस तेरी ...
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