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रंगभूमि-रंगभूमि

4.7
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<div>उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद आम जनमानस की कथा कहने के लिये विख्यात हैं. &nbsp;और उनका येह उपन्यास रंगभूमि इस बात का साक्षात प्रमाण है।&nbsp;</div> <div>&nbsp;</div> <div>नौकरशाही तथा ...

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रंगभूमि-अध्याय 2
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4.6

सूरदास लाठी टेकता हुआ धीरे-धीरे घर चला। रास्ते में चलते-चलते सोचने लगा-यह है बड़े आदमियों की स्वार्थपरता! पहले कैसे हेकड़ी दिखाते थे, मुझे कुत्तो से भी नीचा समझा; लेकिन ज्यों ही मालूम हुआ कि जमीन ...

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समीक्षा
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    शिवम "विद्रोही"
    28 एप्रिल 2019
    इतनी सामर्थ्य तो नहीं कि उपन्यास सम्राट कलम के जादूगर मुंसी जी की कालजयी रचना की समीक्षा कर संकू। रंगभूमि ही उपन्यास का नाम क्यों? क्या यह कहानी वास्तविक नहीं हो सकती। क्या सूरदास जैसा आदर्श व्यक्ति नहीं हो सकता? क्या सोफिया और विनय जैसे बड़े घरों के लड़के कभी जनमानस के लिए अपना जीवन कुर्बान कर सकते हैं? क्या एक माँ जान्ह्वी जैसे हो सकती है जो अपने बेटे के लिए त्याग का समर्पण का पाठ पढ़ाती रहे और उसे उसके कर्मों की याद दिलाती रहे। शायद इसीलिए, इस उपन्यास का नाम रंगभूमि रखा गया होगा। मुंसी जी का यह उपन्यास कर्मभूमि की तुलना में ज्यादा आदर्शवादी है। कर्मभूमि के पात्र अपने अपने कर्म करते गए और उपन्यास की पटकथा बनती गयी, पर रंगभूमि ऐसा लगता है की कहानी का सिर्फ मंचन किया गया। अगर आज सब भूलकर गरीब किसान की जमीन की ओर ध्यान दिया जाए तो क्या वास्तव में आधुनिक रंगभूमि नहीं बन सकती। आज भी आये दिन भूमि अधिग्रहण होता रहता है और ऐसे ही भूमि अधिग्रहित की जाती है कि असली भूपति और उनका परिवार भूख से विलख विलख कर प्राण त्याग देते हैं और कोई सूरदास या इंद्रदत्ता या विनय नहीं बन पाता। सबके सब भैरों, जगधार, ताहिर ही प्रतीत होते हैं। ज्यादातर तो नायकराम बनकर अपनी ही जमीन का नहीं बल्कि दूसरे की जमीन के हिस्से से भी माल बटोर लेते हैं और समय आने पर उनके मुखिया भी बने रहते हैं। विनय सिंह का चरित्र भी कहीँ कहीं पर साधारण मनुष्य से प्रतीत होता है। हाँ रानी जान्ह्वी आदर्शवादिता की पराकाष्ठा हैं। सोफ़िया जैसी सहचारिणी पाकर कोई भी विनय बन सकता है। आधुनिक समय में सोफ़िया तो कोई नहीं पर मिसेज सेवक सब हैं। सेवक परिवार में समूर्ण आधुनिकता समाई है। मिसेज़ सेवक, जॉन सेवक तो सब बन ही रहे हैं। सबसे बड़ी बात हर घर मे ईश्वर सेवक मिल ही जायेंगे आजकल। हाँ, गर नहीं बन सकता तो कोई प्रभु सेवक! लिखा तो और भी बहुत कुछ जा सकता है इस कालजयी रचना पर। पर मेरी विसात नहीं कि इस पर कुछ लिख पाऊँ। साभार प्रतिलिपि कि बिना कुछ खर्च किये इतनी अच्छी रचना पढ़वा दी।
  • author
    mamta madheshiya
    14 जुलै 2018
    mera favorite novel h and full inspiring story h , awesome 👌👌👌👌
  • author
    Ashutosh Mishra
    03 ऑगस्ट 2018
    कलम के जादूगर प्रेमचंद को नमन
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    शिवम "विद्रोही"
    28 एप्रिल 2019
    इतनी सामर्थ्य तो नहीं कि उपन्यास सम्राट कलम के जादूगर मुंसी जी की कालजयी रचना की समीक्षा कर संकू। रंगभूमि ही उपन्यास का नाम क्यों? क्या यह कहानी वास्तविक नहीं हो सकती। क्या सूरदास जैसा आदर्श व्यक्ति नहीं हो सकता? क्या सोफिया और विनय जैसे बड़े घरों के लड़के कभी जनमानस के लिए अपना जीवन कुर्बान कर सकते हैं? क्या एक माँ जान्ह्वी जैसे हो सकती है जो अपने बेटे के लिए त्याग का समर्पण का पाठ पढ़ाती रहे और उसे उसके कर्मों की याद दिलाती रहे। शायद इसीलिए, इस उपन्यास का नाम रंगभूमि रखा गया होगा। मुंसी जी का यह उपन्यास कर्मभूमि की तुलना में ज्यादा आदर्शवादी है। कर्मभूमि के पात्र अपने अपने कर्म करते गए और उपन्यास की पटकथा बनती गयी, पर रंगभूमि ऐसा लगता है की कहानी का सिर्फ मंचन किया गया। अगर आज सब भूलकर गरीब किसान की जमीन की ओर ध्यान दिया जाए तो क्या वास्तव में आधुनिक रंगभूमि नहीं बन सकती। आज भी आये दिन भूमि अधिग्रहण होता रहता है और ऐसे ही भूमि अधिग्रहित की जाती है कि असली भूपति और उनका परिवार भूख से विलख विलख कर प्राण त्याग देते हैं और कोई सूरदास या इंद्रदत्ता या विनय नहीं बन पाता। सबके सब भैरों, जगधार, ताहिर ही प्रतीत होते हैं। ज्यादातर तो नायकराम बनकर अपनी ही जमीन का नहीं बल्कि दूसरे की जमीन के हिस्से से भी माल बटोर लेते हैं और समय आने पर उनके मुखिया भी बने रहते हैं। विनय सिंह का चरित्र भी कहीँ कहीं पर साधारण मनुष्य से प्रतीत होता है। हाँ रानी जान्ह्वी आदर्शवादिता की पराकाष्ठा हैं। सोफ़िया जैसी सहचारिणी पाकर कोई भी विनय बन सकता है। आधुनिक समय में सोफ़िया तो कोई नहीं पर मिसेज सेवक सब हैं। सेवक परिवार में समूर्ण आधुनिकता समाई है। मिसेज़ सेवक, जॉन सेवक तो सब बन ही रहे हैं। सबसे बड़ी बात हर घर मे ईश्वर सेवक मिल ही जायेंगे आजकल। हाँ, गर नहीं बन सकता तो कोई प्रभु सेवक! लिखा तो और भी बहुत कुछ जा सकता है इस कालजयी रचना पर। पर मेरी विसात नहीं कि इस पर कुछ लिख पाऊँ। साभार प्रतिलिपि कि बिना कुछ खर्च किये इतनी अच्छी रचना पढ़वा दी।
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    mamta madheshiya
    14 जुलै 2018
    mera favorite novel h and full inspiring story h , awesome 👌👌👌👌
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    Ashutosh Mishra
    03 ऑगस्ट 2018
    कलम के जादूगर प्रेमचंद को नमन