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मुक्ति..(द्वितीय पुरस्कार से पुरस्कृत)

4.7
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अपने घर के बगीचे में कांपते हाथों से फूलों में पानी सीजती वह बूढ़ी औरत कुछ बुदबुदा रही थी। ऐसे ही... ऐसे ही... सींचा था उसे भी। पानी से..? नहीं..खून से,मेरा अंशु,मेरा बेटा, यह कहते हुए उस बूढ़ी ...

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मैरी(तीसरा स्थान प्राप्त)
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Anamika
4.8
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Anamika
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pratik Patel
    21 জানুয়ারী 2021
    वैसे अगर ऋतु के भूतकाल के विषय में अगर आप आगे भी कोई स्टोरी लिखती है तो मैं उसे जरूर पढ़ना चाहूंगा मेरा कहने का मतलब है कि शायद इसे लेकर आप कोई विस्तृत कहानी भी लिख सकते हैं। ऐसा इसलिए भी कह रहा हूं कि कहीं ना कहीं मुझे ऋतु के बारे में भी जानने की जिगनासा मन में पैदा हुई इस कहानी को पढ़ते हुए। सच मे क्या बेहतरीन रचना थी!
  • author
    नेहा बिंदल
    13 মে 2020
    बहुत सुंदर कहानी, सच ही तो है आज के बच्चे, अपने माँ पिता को तड़पने के लिए यूँ ही छोड़ जाते है, काश वो समझ पाते कि असली सफलता माँ पिता की खुशी में ही है। रितु ने बहुत ही अच्छा काम किया। काश कि लोगो मे इतनी संवेदनशीलता हो कि वो किसी दूसरे का दर्द समझ सके।
  • author
    पवनेश मिश्रा
    14 মে 2020
    विषय को प्रेरित करता लेखन, बेहतरीन कथानक हेतु बहुत बहुत बधाई अनामिका जी 🙏🌹🙏,
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    Pratik Patel
    21 জানুয়ারী 2021
    वैसे अगर ऋतु के भूतकाल के विषय में अगर आप आगे भी कोई स्टोरी लिखती है तो मैं उसे जरूर पढ़ना चाहूंगा मेरा कहने का मतलब है कि शायद इसे लेकर आप कोई विस्तृत कहानी भी लिख सकते हैं। ऐसा इसलिए भी कह रहा हूं कि कहीं ना कहीं मुझे ऋतु के बारे में भी जानने की जिगनासा मन में पैदा हुई इस कहानी को पढ़ते हुए। सच मे क्या बेहतरीन रचना थी!
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    नेहा बिंदल
    13 মে 2020
    बहुत सुंदर कहानी, सच ही तो है आज के बच्चे, अपने माँ पिता को तड़पने के लिए यूँ ही छोड़ जाते है, काश वो समझ पाते कि असली सफलता माँ पिता की खुशी में ही है। रितु ने बहुत ही अच्छा काम किया। काश कि लोगो मे इतनी संवेदनशीलता हो कि वो किसी दूसरे का दर्द समझ सके।
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    पवनेश मिश्रा
    14 মে 2020
    विषय को प्रेरित करता लेखन, बेहतरीन कथानक हेतु बहुत बहुत बधाई अनामिका जी 🙏🌹🙏,