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बारिश और नाव

4.8
148

"माँ! मुझे वो चाहिए!" "पर मैं कहाँ से लाकर दूँ बेटा!" "जहाँ से भी हो! बस!तू मुझे वो लाकर दे!" "नाहक ज़िद मत कर!" "मैं कहाँ ज़िद कर रहा हूँ!मैं तो बस ये कह रहा हूँ कि मुझे बिरजू से अच्छी नाव बनानी ...

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सावन या सौतन
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आरती झा
4.3

बारिश की रिमझिम फुहारें देखकर सरिता का मन-मयूरा नाच रहा था...... उसे बरसात बहुत पसंद है,,वो उसमें भींगना चाहती है,,बूँदों को अपनी हथेलियों पर महसूस करना चाहती है लेकिन क्या करे!माँ की सख़्त हिदायतें ...

लेखक के बारे में
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आरती झा

मैं नहीं जानती, कि मैं एक लेखिका हूँ या नहीं लेकिन हाँ, साहित्य सर्जक हूँ और आशावादी भी। अपनी आँखों देख, भावना के वेग में बह, कल्पना की पीठ पर उड़ान भर, मूर्तिकार की तरह नए बिंब बना, कागज़ पर उतार लोगों के सामने परोसना, अपना काम समझती हूँ। अगर बाहर आने के लिए छटपटाते शब्दों को न निकलने दिया तो विलीन होने में देर नहीं लगती है।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kamlesh Pandey
    05 जुलाई 2024
    Bahut badhiya laga.
  • author
    shanta chandak
    17 जुलाई 2020
    बहुत सुंदर
  • author
    पूजा सहरावत
    17 जुलाई 2020
    बहुत सुंदर
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kamlesh Pandey
    05 जुलाई 2024
    Bahut badhiya laga.
  • author
    shanta chandak
    17 जुलाई 2020
    बहुत सुंदर
  • author
    पूजा सहरावत
    17 जुलाई 2020
    बहुत सुंदर