देखकर आकाश में रंग बिरंगी पतंगों की होड़ उड़ चला मन मेरा भी विस्तृत अंबर की ओर। देखकर इनकी ऊँचाई मन बड़ा विचलित हुआ, यूँ लगा कागज़ की पतंग ने नभ को कैसे छुआ? इंद्रधनुषी पतंग बँध डोर संग उड़ रही ...
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एहसासों की पतंग...
मीना सिंह "मीन"
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एहसासों की पतंग संग, मेरे विचारों की इक डोर, जब बँधे दोनों संग-संग, जैसे हुई थी इक नई भोर। कागज बना फिर पतंग, कलम बनी उसकी डोर, हर्फ़ दर हर्फ़ उतरता गया, कागजों पर मन का शोर। दिल की बेचैनियाँ बढ़ चली, ...
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"ऐ मेरी ज़िंदगी क्यों खुद से बेखबर है,
तजुर्बों का तू इक खूबसूरत शहर है।"😊
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सारांश
"ऐ मेरी ज़िंदगी क्यों खुद से बेखबर है,
तजुर्बों का तू इक खूबसूरत शहर है।"😊
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