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डिब्बा

4.7
2674

रात के अंधेरे में उस जगह पर हल्की रोशनी थी। वहां आज किसी की ड्यूटी नही थी। ये अजीब था। कफ़न ओढ़े मुर्दे अपनी चिर निद्रा में सो रहे थे। इतनी शांति कभी इस मुर्दाघर में नही थी। वरना भीमा और उसके जैसे ...

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भाग जा बच्चा
भाग जा बच्चा
भरत ठाकुर "ठाकुर"
4.8
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लेखक के बारे में
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भरत ठाकुर

मेरी सारी कहानिया, विचार एवं व्यंग मेरे द्वारा स्वरचित है। कृपया नोट करे कि मेरी सारी कहानियाँ कॉपीराइटेड है। किसीने अगर गलती से भी मेरी कहानी या उसके अंश को भी कही पर कॉपी पेस्ट करके अपनी खुद की कहानी बता दी तो उन्हें इस गलती के लिए कॉपीराइट एक्ट के तहत उचित कार्यवाही की जाएगी।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    पवनेश मिश्रा
    14 मई 2020
    आपके कथानक किसी अलग ही स्तर पर ले जाकर विचरण करवा देते हैं, गजब का अंदाज, चुस्त दुरुस्त लेखन, न एक सूत इधर न उधर, वाह, बहुत खूब, बेहतरीन कथानक हेतु बहुत बहुत बधाई भरत जी 🙏🌹🙏,
  • author
    fehmina khan
    18 सितम्बर 2020
    Lajawab kahani.... Wah Kya likhte ho Sir aap..... Aaj ye gyan ki baat pata chali k dhokha fareb sirf insaan hi Nahi pishach b krte h😢😢😢
  • author
    Gayatriba Jadeja
    04 जुलाई 2020
    bhot hi daravani khani.... pta he mene puri padhi nahi thodi hi padhi....himmat hi nahi huiii......oh God it's very dangers
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    पवनेश मिश्रा
    14 मई 2020
    आपके कथानक किसी अलग ही स्तर पर ले जाकर विचरण करवा देते हैं, गजब का अंदाज, चुस्त दुरुस्त लेखन, न एक सूत इधर न उधर, वाह, बहुत खूब, बेहतरीन कथानक हेतु बहुत बहुत बधाई भरत जी 🙏🌹🙏,
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    fehmina khan
    18 सितम्बर 2020
    Lajawab kahani.... Wah Kya likhte ho Sir aap..... Aaj ye gyan ki baat pata chali k dhokha fareb sirf insaan hi Nahi pishach b krte h😢😢😢
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    Gayatriba Jadeja
    04 जुलाई 2020
    bhot hi daravani khani.... pta he mene puri padhi nahi thodi hi padhi....himmat hi nahi huiii......oh God it's very dangers