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जूठी पत्तल

4.5
7810
लघुकथाझूठी पत्तल

जूठी पत्तल

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Vishnu Jaipuria "Vishu"
4.8

चौधराइन थक के चूर हो गई थी। अपने सारे जेवरों को उतार कर आलमारी में बन्द कर दिये और सोने के लिए अपने कमरे में चली गई । गजेंद्र का कमरा वहीं बगल में था। अभी ...

लेखक के बारे में
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Vishnu Jaipuria

शब्दों के समंदर में मेरी एक छोटी सी नाव है, जाना तो उस पार है, ये कलम ही मेरी पतवार है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Renu
    22 जून 2019
    अत्यंत मार्मिक कहानी विष्णु जी | मेरे मन को कहानी के अंत में चौधराइन से कुछ मानवता की उमीद थी पर वो जाती रही | व्यर्थ के दिखावे के प्रपंच में सोये कथित इन दानवीरों को दरिद्र लोगों की आहें सुनती कहाँ हैं ? ऐसे रुतबे को धिक्कार है ! गरीबों की मानवीयता देखिये फिर भी दुआ दे जाते हैं |
  • author
    भारती करपटने
    28 अगस्त 2020
    बस इसी मानसिकता से ऊपर उठना ही तो सही रूप में धर्म भी है और संस्कार भी। सात गांव को खिलाने में ख़र्च हुए मगर वो दिखावा था ,सिर्फ एक भिखाड़ी को नहीं खिलाना उसके सारे दिखावे को नग्न कर दिया। ऐसा अक्सर होता रहा है। आपने बेहद रोचक तरीके से कलमबद्ध किया। साधुवाद।
  • author
    Hitendra Kumar "परम_यशदा"
    21 मई 2019
    होता ही ऐसा है कि पाठक लेखक के विचारों से अलग कहानी का आकलन करता है... ओर इस बात को प्रभावित करने कुछ लेखक प्रयास भी करते हैं...। पर आपकी सरल रचनाये पाठक को मुक्त मनसे कुछ भी सोचने देती हैं!!
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    Renu
    22 जून 2019
    अत्यंत मार्मिक कहानी विष्णु जी | मेरे मन को कहानी के अंत में चौधराइन से कुछ मानवता की उमीद थी पर वो जाती रही | व्यर्थ के दिखावे के प्रपंच में सोये कथित इन दानवीरों को दरिद्र लोगों की आहें सुनती कहाँ हैं ? ऐसे रुतबे को धिक्कार है ! गरीबों की मानवीयता देखिये फिर भी दुआ दे जाते हैं |
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    भारती करपटने
    28 अगस्त 2020
    बस इसी मानसिकता से ऊपर उठना ही तो सही रूप में धर्म भी है और संस्कार भी। सात गांव को खिलाने में ख़र्च हुए मगर वो दिखावा था ,सिर्फ एक भिखाड़ी को नहीं खिलाना उसके सारे दिखावे को नग्न कर दिया। ऐसा अक्सर होता रहा है। आपने बेहद रोचक तरीके से कलमबद्ध किया। साधुवाद।
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    Hitendra Kumar "परम_यशदा"
    21 मई 2019
    होता ही ऐसा है कि पाठक लेखक के विचारों से अलग कहानी का आकलन करता है... ओर इस बात को प्रभावित करने कुछ लेखक प्रयास भी करते हैं...। पर आपकी सरल रचनाये पाठक को मुक्त मनसे कुछ भी सोचने देती हैं!!