उस रोज बारिश बहुत जोरो से बरस रही थी, चारो तरफ घने अंधेरे छाय हुए थे । उसी अंधेरे में रमेश की कार इस घने अंधेरे को चीरता हुआ आगे बढ़ रहा था जिसे खुद रमेश ही चला रहा था और बगल वाली सीट पर उसकी ...
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खूनी ढाबा ( भाग-2)
Roushan kumar
4.1
दरवाजे के तरफ मुड़ते ही अचानक रमेश को लगता है कि खिड़की के शीशे से दो अंगार बरश्ते लाल निगाहे उन पर अपनी नजर रखी हुई थी। जिसे देख वो एक दम से डर जाता है उसकी शरीर भय से एक ...
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