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कालचक्र

4.7
19366

कालचक्र मीरा शादी करके मोहित के घर आ गई। मोहित का अच्छा खासा बिजनेस था। और मीरा भी पेशे से आर्किटेक्ट थी। घर के एक हिस्से में उसने अपना आफिस बना लिया और अपना काम घर से करने लगी दोनों अपनी - अपनी ...

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कस्तूरी
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Damini
4.6

कस्तूरी ऊंचे - ऊंचे पेड़ों के बीच में लाल खपरैलौं से बना कस्तूरी का घर। घर के एक कोने में बना मिट्टी का चुल्हाँ , उसके पास लकड़ियों का गठ्ठर, एक तरफ कोने में पानी से भरा मिट्टी का मटका। बाहर आंगन में ...

लेखक के बारे में
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Damini

साहित्य की पगडंडी पर अभी पहला कदम रखा हैं। मंज़िल अभी बहुत दूर है। 🙏

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Beena Awasthi
    27 जुलाई 2019
    दामिनी जी आज के दौर में हम एक अंधी दौड़ में शामिल होकर भूल जाते हैं कि पैसा बहुत कुछ तो है लेकिन सब कुछ नहीं और बच्चों की क्या गलती उन्होंने तो शुरू से ही संवेदना हीन वातावरण देखा है । उन्होंने अपने माता पिता को अपने या दादा दादी के साथ बैठते, बात करते या ख्याल रखते देखा ही नहीं तो वही सीखा जो उन्होंने देखा और पाया है। यह तो अंत में पता चलता है कि हमने कितना मूल्यवान खो दिया है।
  • author
    Mamta Upadhyay
    20 मई 2020
    बहुत बहुत खूबसूरत रचना दिल को छू लिया👌👌👌👌👌👍👍👍👍😢😢
  • author
    विद्या शर्मा
    21 जुलाई 2019
    मानवीय संवेदना ओं का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है तुमने दामिनी इसके लिए बहुत-बहुत बधाई वास्तव में हम बस भागते जाते हैं भागते जाते हैं और इस भागा दौड़ी में क्या कुछ पीछे छूट जाता है यह हमें तब पता चलता है जो हम उसे वापस लौट कर हासिल भी नहीं कर सकते इसलिए जरूरी है की अपने रिश्ते और अपनी संवेदनाओं को बचाकर रखा जाए आपकी रचना सरल और सहज रूप में अपनी बात कहने के काबिलियत रहती है
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    Beena Awasthi
    27 जुलाई 2019
    दामिनी जी आज के दौर में हम एक अंधी दौड़ में शामिल होकर भूल जाते हैं कि पैसा बहुत कुछ तो है लेकिन सब कुछ नहीं और बच्चों की क्या गलती उन्होंने तो शुरू से ही संवेदना हीन वातावरण देखा है । उन्होंने अपने माता पिता को अपने या दादा दादी के साथ बैठते, बात करते या ख्याल रखते देखा ही नहीं तो वही सीखा जो उन्होंने देखा और पाया है। यह तो अंत में पता चलता है कि हमने कितना मूल्यवान खो दिया है।
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    Mamta Upadhyay
    20 मई 2020
    बहुत बहुत खूबसूरत रचना दिल को छू लिया👌👌👌👌👌👍👍👍👍😢😢
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    विद्या शर्मा
    21 जुलाई 2019
    मानवीय संवेदना ओं का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है तुमने दामिनी इसके लिए बहुत-बहुत बधाई वास्तव में हम बस भागते जाते हैं भागते जाते हैं और इस भागा दौड़ी में क्या कुछ पीछे छूट जाता है यह हमें तब पता चलता है जो हम उसे वापस लौट कर हासिल भी नहीं कर सकते इसलिए जरूरी है की अपने रिश्ते और अपनी संवेदनाओं को बचाकर रखा जाए आपकी रचना सरल और सहज रूप में अपनी बात कहने के काबिलियत रहती है