pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

साँप-साँप

3.2
8712

31-5-12, सरदारशहर ...

अभी पढ़ें
साँप-साँप
पुस्तक का अगला भाग यहाँ पढ़ें साँप-साँप
उम्मेदसिंह बैद "साधक"

रात अचानक महेश की आँख खुल गई। लघु-शंका-निवृत्ति हेतु कमरे से बाहर आया, ड्राईंग-हाल में कारपेट पर बड़ा सा साँप दिखाई दिया! कदम वहीं रुक गये, बाथ-रुम खोलने की हिम्मत ही ना हुई। धीरे से आकर श्रीमतीजी को ...

लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है