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ज़िन्दगी इतनी खुदगर्ज कैसे हो सकती है

4.6
229

ज़िन्दगी इतनी खुदगर्ज कैसे हो सकती है. आज जिस मुकाम पे खरी हु वह दूर दूर तक कुछ नज़र नहीं आ रहा- हा बहुत सरे यादे है- बहुत सारे दर्द है- तुम्हारे साथ बिताये ऐसे पल है जो मुझे बार बार कह रहे है की जीवन ...

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लेखक के बारे में
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ममता वधावन
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    15 अक्टूबर 2018
    अच्छा लिखा है आपने / पाठक को बांधकर रखने का गुण आपके पास है / उसका सदुपयोग किया है / बधाई...
  • author
    surendra
    12 जुलाई 2018
    very nice story's I like
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  • author
    Ravindra Narayan Pahalwan
    15 अक्टूबर 2018
    अच्छा लिखा है आपने / पाठक को बांधकर रखने का गुण आपके पास है / उसका सदुपयोग किया है / बधाई...
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    surendra
    12 जुलाई 2018
    very nice story's I like