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ये औरतें

4.5
643

कहाँ ढूंढ रहे हो ? क्या कहा ? चूल्हे चौके की खिंचती हुई निवाड़ में देहलियों के लीपने में जहाँ लीप देती हैं वजूद की स्याहियां भी और मुस्कुराकर उतार देती हैं जीने के कर्ज दीवारों से झड़ते पलस्तर में ...

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लेखक के बारे में

मेरा परिचय नाम: वन्दना गुप्ता जन्म तिथि : 8-6-1967 स्नातक : कामर्स ( दिल्ली यूनिवर्सिटी , भारती कॉलेज ) डिप्लोमा : कम्प्यूटर मेल : [email protected] विधाएँ : कविता, उपन्यास, कहानी, समीक्षा, लेख कविता संग्रह : 1) “ बदलती सोच के नए अर्थ” (हिंदी अकादमी दिल्ली के सौजन्य से) 2) प्रश्नचिन्ह...आखिर क्यों ?, 3) कृष्ण से संवाद, 4) गिद्ध गिद्दा कर रहे हैं 5) भावरस माल्यम, 6) बहुत नचाया यार मेरा, 7) प्रेम नारंगी देह बैंजनी कहानी संग्रह : “बुरी औरत हूँ मैं” जनवरी 2017 उपन्यास : “अँधेरे का मध्य बिंदु” जनवरी 2016 “शिकन के शहर में शरारत” मार्च 2019 समीक्षा संग्रह :1) “सुधा ओम ढींगरा – रचनात्मक दिशाएं” 2) “अपने समय से संवाद” – (केन्द्रीय हिंदी निदेशालय के सौजन्य से प्रकाशित ) इ - कहानी संग्रह : “अमर प्रेम व अन्य कहानियाँ” जनवरी 2016 नॉटनल पर इ – कविता संग्रह : “ये बेहया बेशर्म औरतों का ज़माना है” स्टोरी मिरर ऑनलाइन पोर्टल पर साझा कहानी संग्रह : 1) अंतिम पड़ाव 2) कितने गुलमोहर प्रकाशित साझा कविता संग्रह : 17 साझा संग्रहों में कवितायें प्रकाशित प्रकाशित साझा पुस्तकें : 9 साझा संग्रहों में आलेख, समीक्षा, व्यंग्य आदि प्रकाशित प्रकाशित रचनायें : सभी प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं तथा वैब माध्यमों आदि पर कहानी , कविता , समीक्षा और आलेख प्रकाशित कविता कोष, हिंदी समय, भारतकोश पर कवितायेँ सम्मिलित आल इंडिया रेडियो पर कई बार कविता पाठ सम्मान : शोभना काव्य सृजन सम्मान – 2012 "हिन्दुस्तानी भाषा साहित्य समीक्षा सम्मान"- 2015 अनुवाद : अंग्रेजी, सिन्धी , पंजाबी और नेपाली में कविताओं का अनुवाद तीन ब्लॉग : ज़िन्दगी एक खामोश सफ़र , ज़ख्म जो फूलों ने दिए , एक प्रयास मेरी किताबें पढने के लिए यहाँ से संपर्क कर सकते हैं : वंदना गुप्ता का पहला उपन्यास अंधेरे का मध्य बिन्दु बिक्री के लिए ऑनलाइन उपलब्ध है.... http://www.amazon.in/gp/product/9385296256… http://www.hindibook.com/index.php?p=sr प्रेम नारंगी देह बैंजनी https://www.amazon.in/PREM-NARANGI-BAINJANI-VANDANA-GUPTA/dp/B07PN6HSZB/ref=sr_1_1?keywords=prem narangi deh bainjani by vandana gupta शिकन के शहर में शरारत https://www.amazon.in/SHIKAN-KE-SHEHER-MEIN-SHARARAT/dp/B07PN6C4Q8/ref=sr_1_16?crid=1PCIG2PQ8A3HW कविता संग्रह 'गिद्ध गिद्दा कर रहे हैं' अब अमेज़न पर भी उपलब्ध है..... https://www.amazon.in/dp/B079X11XN4 जो अमेज़न से मंगवाना चाहें उनके लिए लिंक दे दिया है क्योंकि बहुत से लोग कहते हैं हमें अमेज़न का लिंक दो . लेकिन जिन्हें कीमत ज्यादा लगे तो प्रकाशक Niraj Sharma जी से संपर्क कर सिर्फ 200रु की कीमत पर प्राप्त कर सकते हैं ......उनका नंबर है ....8630479331 , 9837244343 कहानी संग्रह : बुरी औरत हूँ मैं - APN Publications प्रकाशक निर्भय कुमार - M : 8766370387 http://www.amazon.in/BURI-AURAT-MAIN-ब-र-औरत/dp/9385296523/ref=sr_1_3?ie=UTF8

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    Anup Kumar
    01 জুলাই 2020
    वंदना जी की कविता "ये औरतें " नारी विषय पर केन्द्रित कर लिखी गयी है.इनकी मै बहुत सारी कहानियां एंव कविताएं पढ़ा हूँ. यह कविता आज के सामाजिक परिवेश की नारी के मुक्ति आन्दोलन का जीता-जागता उदाहरण है.कवित्री महोदया की इस कविता को भागो मे विभक्त कर सकते है.पहले भाग मे 21वी सदी की पहली नारी का सामाजिक स्थिति और दूसरे भाग मे आज की अर्थात 21 वी सदी की नारी. सदियों से नारी को लिपटी साड़ी मे कोमल तंतु, जिसकी नजरे झुकी हुई थी,वे ससुराल के ताने सुनती थी,हिम्मत नही था आवाज़ उठाने की.उसे लोग अबला का नाम दिया गया था.आज की 21वी सदी मे नारी की साड़ी न परिभाषा है,वाणी अभी भी मधुर है अब उनमे कुछ कर गुजरने की प्रबल आशा है. अभी सरकार ने भी 9मार्च,2010 को राज्यसभा मे महिला आरक्षण बिल पारित कर दिया, जिसे संसद और राज्य की विधानसभाओ मे महिला के 33% आरक्षण की व्यवस्था है.अब तो महिलाएं की इतनी अधिक कानूनी अधिकार दे दिये जिससे वे हर मामले मे पुरुषों के आगे निकल गयी है.अब नारी अबला नही पुरुषों के लिए "बला" हो गयी है.नारी सशक्तीकरण का इससें अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता हैं. मुझे कवित्री की कविताएं मे राष्ट्रीय कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर की ओजस्वी वाणी की झलक दिखाई देती है.मै आशा करता हूँ कि इनकी लेखकी समाज मे नारी के अधिकारो के लिए अपनी गर्जन पूरे समाज को सुनाई देती रहे. तुलसीदास ने रामचरित मानस के जरिए नारी के बारे मे कहे है ः- "जगनी राम जानिह पर नारी! विरह के मन सुन सदन.तुम्हारे!" अर्थातः जो पुरूष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को अपनी माँ के समान समझता है उसी के ह्मदय मे ईश्वर का वास होता है.जबकि इसके विपरीत जो पुरूष दूसरी स्त्री के संग संबंध बनाता है वह पापी होता हैं और वह ईश्वर से हमेशां दूर रहता है" . शेष फिर कभी. अनुप। कुमार, वन विभाग , राँची.878 935 9681
  • author
    ज्योति खरे
    14 অক্টোবর 2015
    स्त्री के जीवन और उनकी मानसिक स्वतंत्रता पर वंदना जी ने बहुत कुछ लिखा है  इनकी किताब " बदलती सोच के नए संदर्भ" ऐसी ही कविताओं का संकलन है-- यह कविता भी स्त्री की बदलती मानवीय दशा के परिणाम बताती है और पुरुष समाज को सचेत भी करती है---  बहुत खूब  बधाई 
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    13 অক্টোবর 2015
    बहुत सुन्दर । ग्रामीण नारी का सजीव चित्रण ।परन्तु "मुस्तैद, वजूद इत्यादि" जैसे शब्द राष्ट्र भाषा के ज्ञान को अच्छी तरह दर्शा रहे है । 
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    Anup Kumar
    01 জুলাই 2020
    वंदना जी की कविता "ये औरतें " नारी विषय पर केन्द्रित कर लिखी गयी है.इनकी मै बहुत सारी कहानियां एंव कविताएं पढ़ा हूँ. यह कविता आज के सामाजिक परिवेश की नारी के मुक्ति आन्दोलन का जीता-जागता उदाहरण है.कवित्री महोदया की इस कविता को भागो मे विभक्त कर सकते है.पहले भाग मे 21वी सदी की पहली नारी का सामाजिक स्थिति और दूसरे भाग मे आज की अर्थात 21 वी सदी की नारी. सदियों से नारी को लिपटी साड़ी मे कोमल तंतु, जिसकी नजरे झुकी हुई थी,वे ससुराल के ताने सुनती थी,हिम्मत नही था आवाज़ उठाने की.उसे लोग अबला का नाम दिया गया था.आज की 21वी सदी मे नारी की साड़ी न परिभाषा है,वाणी अभी भी मधुर है अब उनमे कुछ कर गुजरने की प्रबल आशा है. अभी सरकार ने भी 9मार्च,2010 को राज्यसभा मे महिला आरक्षण बिल पारित कर दिया, जिसे संसद और राज्य की विधानसभाओ मे महिला के 33% आरक्षण की व्यवस्था है.अब तो महिलाएं की इतनी अधिक कानूनी अधिकार दे दिये जिससे वे हर मामले मे पुरुषों के आगे निकल गयी है.अब नारी अबला नही पुरुषों के लिए "बला" हो गयी है.नारी सशक्तीकरण का इससें अच्छा उदाहरण और क्या हो सकता हैं. मुझे कवित्री की कविताएं मे राष्ट्रीय कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर की ओजस्वी वाणी की झलक दिखाई देती है.मै आशा करता हूँ कि इनकी लेखकी समाज मे नारी के अधिकारो के लिए अपनी गर्जन पूरे समाज को सुनाई देती रहे. तुलसीदास ने रामचरित मानस के जरिए नारी के बारे मे कहे है ः- "जगनी राम जानिह पर नारी! विरह के मन सुन सदन.तुम्हारे!" अर्थातः जो पुरूष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को अपनी माँ के समान समझता है उसी के ह्मदय मे ईश्वर का वास होता है.जबकि इसके विपरीत जो पुरूष दूसरी स्त्री के संग संबंध बनाता है वह पापी होता हैं और वह ईश्वर से हमेशां दूर रहता है" . शेष फिर कभी. अनुप। कुमार, वन विभाग , राँची.878 935 9681
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    ज्योति खरे
    14 অক্টোবর 2015
    स्त्री के जीवन और उनकी मानसिक स्वतंत्रता पर वंदना जी ने बहुत कुछ लिखा है  इनकी किताब " बदलती सोच के नए संदर्भ" ऐसी ही कविताओं का संकलन है-- यह कविता भी स्त्री की बदलती मानवीय दशा के परिणाम बताती है और पुरुष समाज को सचेत भी करती है---  बहुत खूब  बधाई 
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    13 অক্টোবর 2015
    बहुत सुन्दर । ग्रामीण नारी का सजीव चित्रण ।परन्तु "मुस्तैद, वजूद इत्यादि" जैसे शब्द राष्ट्र भाषा के ज्ञान को अच्छी तरह दर्शा रहे है ।