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हिन्दी

यही मेरा वतन

4.6
5545

आज पूरे साठ बरस के बाद मुझे अपने वतन, प्यारे वतन का दर्शन फिर नसीब हुआ। जिस वक़्त मैं अपने प्यारे देश से विदा हुआ और क़िस्मत मुझे पच्छिम की तरफ़ ले चली, मेरी उठती जवानी थी। मेरी रगों में ताज़ा खून ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • author
    Vivek Kumar Rajput
    01 दिसम्बर 2018
    इन्सान कहीं भी चला जाए, मगर वो अपने देश की यादें नहीं बिसरा सकता हैं। खासकर जिसने बचपन से लेकर जवानी तक कि उमर जहां बिताई हो। ये जिंदगी की एक अवस्था है जहां हर चीज खुशी देती है। मेरी भी आंखों में पानी आ गया है और मुझे अपने देश की मीठी यादें अपनी ओर खींचने लगी। मुंशी प्रेमचन्द जी ने अपने देश से बाहर रहने वाले लोगों के दिल की आवाज़ रेखांकित की है, उनको कोटि कोटि नमन
  • author
    Satyavrata Sharma
    06 मार्च 2020
    कहानी का दूसरा नाम मुंशी प्रेमचंद है।
  • author
    Dr. Sunil Kr. Mishra
    06 मार्च 2020
    देश को छोड़ कर विदेशों में भ्रमण करने का और रहने का एक बृहद अनुभव सौभाग्य से प्राप्त हुआ ।विदेश में रहने के बाद भी अपने देश की मिट्टी के महक हमेशा मिलती है। वो अजनबी हिन्दुस्तानी जिनको आप जानते तक नहीं हो वो भी अपने परिवार का ही लगने लगता है, और दिल में बहुत खुशी होती है जब वहां कोई मिलता है । वैसे मुंशी प्रेमचन्द की रचनाएं विदेशों में भी रहने वाले लोगों के दिल में समाहित रहती है और हर समय अपने देश की सस्कृति, सभ्यता और देशप्रेम की याद तरो ताज़ा करती है । इसका बहुत बड़ा अनुभव हमें प्राप्त है । अपने मातृभूमि अपनी मिट्टी की चाहत किसे नहीं होती हैं। वैसे तो मेरा बचपन इलाहाबाद जिसका नाम प्रयागराज कर दिया गया है यहीं व्यतीत हुआ और मुंशी प्रेमचन्द जी के परिवार से हमारे पारिवारिक संबंध भी रहे और आज भी हैं।उनके पोते अतुल राय जी हमारे बड़े घनिष्ठ मित्र और मार्गदर्शक रहे , जो दुर्भाग्य से अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन रिश्ते आज भी जिंदा है और आगे भी रहेंगे।हम सभी को मुंशी प्रेमचंद जी के साहित्य से प्रेरणा मिलती रहेगी । एक पाठक और लेखक होने के नाते , सभी से मेरा आग्रह है कि इस महानतम साहित्यकार के साहित्य से अपनी संस्कृति , सभ्यता एवम् देशप्रेम का ज्ञान अर्जित करते रहे ।
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    Vivek Kumar Rajput
    01 दिसम्बर 2018
    इन्सान कहीं भी चला जाए, मगर वो अपने देश की यादें नहीं बिसरा सकता हैं। खासकर जिसने बचपन से लेकर जवानी तक कि उमर जहां बिताई हो। ये जिंदगी की एक अवस्था है जहां हर चीज खुशी देती है। मेरी भी आंखों में पानी आ गया है और मुझे अपने देश की मीठी यादें अपनी ओर खींचने लगी। मुंशी प्रेमचन्द जी ने अपने देश से बाहर रहने वाले लोगों के दिल की आवाज़ रेखांकित की है, उनको कोटि कोटि नमन
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    Satyavrata Sharma
    06 मार्च 2020
    कहानी का दूसरा नाम मुंशी प्रेमचंद है।
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    Dr. Sunil Kr. Mishra
    06 मार्च 2020
    देश को छोड़ कर विदेशों में भ्रमण करने का और रहने का एक बृहद अनुभव सौभाग्य से प्राप्त हुआ ।विदेश में रहने के बाद भी अपने देश की मिट्टी के महक हमेशा मिलती है। वो अजनबी हिन्दुस्तानी जिनको आप जानते तक नहीं हो वो भी अपने परिवार का ही लगने लगता है, और दिल में बहुत खुशी होती है जब वहां कोई मिलता है । वैसे मुंशी प्रेमचन्द की रचनाएं विदेशों में भी रहने वाले लोगों के दिल में समाहित रहती है और हर समय अपने देश की सस्कृति, सभ्यता और देशप्रेम की याद तरो ताज़ा करती है । इसका बहुत बड़ा अनुभव हमें प्राप्त है । अपने मातृभूमि अपनी मिट्टी की चाहत किसे नहीं होती हैं। वैसे तो मेरा बचपन इलाहाबाद जिसका नाम प्रयागराज कर दिया गया है यहीं व्यतीत हुआ और मुंशी प्रेमचन्द जी के परिवार से हमारे पारिवारिक संबंध भी रहे और आज भी हैं।उनके पोते अतुल राय जी हमारे बड़े घनिष्ठ मित्र और मार्गदर्शक रहे , जो दुर्भाग्य से अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन रिश्ते आज भी जिंदा है और आगे भी रहेंगे।हम सभी को मुंशी प्रेमचंद जी के साहित्य से प्रेरणा मिलती रहेगी । एक पाठक और लेखक होने के नाते , सभी से मेरा आग्रह है कि इस महानतम साहित्यकार के साहित्य से अपनी संस्कृति , सभ्यता एवम् देशप्रेम का ज्ञान अर्जित करते रहे ।