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हिमगिरि चरणों में शीश नवा, मैंने शुरू किया चलना, तपती रेती पर चलकर भी, शीतलता को न मिटने दिया, सघन वनों की छाया देख, कभी मेरा मन न ललचाया, इस शाश्वत सत्य का ज्ञान मुझे, जो रूका उसने अस्तित्व ...