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वो बूढ़ी औरत

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वो बूढ़ी औरत बैठी रहती थी कुर्सी पर कुछ नहीं करती थी, रसोई में बनते पकवान को देख देख कर खुश होती थी टुक टुक तकती थी आने जाने वालों को कहीं भी आ जा नहीं पाती थी अकेले लेकिन,अकेले ,देहरी पर नयनों को ...

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लेखक के बारे में
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Prarthana Bharti

मन मे जब भी कुछ घुमड़ता है लेखन बन जाता है।बरस जाता है तो सब धुल जाता है।मेरी लेखनी स्वाति नक्षत्र की बूंद नहीं, जिससे मोती बने।कोई पढ़े ना पढ़े सबकी अपनी मरजी।हां आप पढ़कर कुछ सुझाएगे तो मुझे अच्छा लगेगा।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    03 नवम्बर 2021
    बेहद सटीक सुंदर रचना आपकी दी
  • author
    Anjana Ojha
    03 नवम्बर 2021
    👏🏻👏🏻👏🏻
  • author
    Dr.t.kaariya Kaariya
    03 नवम्बर 2021
    समर्पित सार्थक लेखन
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    03 नवम्बर 2021
    बेहद सटीक सुंदर रचना आपकी दी
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    Anjana Ojha
    03 नवम्बर 2021
    👏🏻👏🏻👏🏻
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    Dr.t.kaariya Kaariya
    03 नवम्बर 2021
    समर्पित सार्थक लेखन