वो बूढ़ी औरत बैठी रहती थी कुर्सी पर कुछ नहीं करती थी, रसोई में बनते पकवान को देख देख कर खुश होती थी टुक टुक तकती थी आने जाने वालों को कहीं भी आ जा नहीं पाती थी अकेले लेकिन,अकेले ,देहरी पर नयनों को ...
मन मे जब भी कुछ घुमड़ता है लेखन बन जाता है।बरस जाता है तो सब धुल जाता है।मेरी लेखनी स्वाति नक्षत्र की बूंद नहीं, जिससे मोती बने।कोई पढ़े ना पढ़े सबकी अपनी मरजी।हां आप पढ़कर कुछ सुझाएगे तो मुझे अच्छा लगेगा।
सारांश
मन मे जब भी कुछ घुमड़ता है लेखन बन जाता है।बरस जाता है तो सब धुल जाता है।मेरी लेखनी स्वाति नक्षत्र की बूंद नहीं, जिससे मोती बने।कोई पढ़े ना पढ़े सबकी अपनी मरजी।हां आप पढ़कर कुछ सुझाएगे तो मुझे अच्छा लगेगा।
रिपोर्ट की समस्या
रिपोर्ट की समस्या
रिपोर्ट की समस्या