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वो औरत रोज़ अपने आप पर यूँ जुल्म ढाती है स्वयं भूखी रहे पर रोटियाँ घर को खिलाती है नशे में धुत्त अपने आदमी से मार खाकर भी बहुत जिन्दादिली से दर्द को वो भूल जाती है वो बहती इक नदी है तुम उसे पोखर समझना ...