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हम बने तुम बने एक दूजे के लिए

4.7
8498

"अरे क्या हुआ ? ऐसे रो क्यों रही हो ?" "कुछ नहीं ।" ये 'कुछ नहीं' भी कमाल होता है, कितना कुछ खुद में समेटे रहता है । "कुछ तो है ! अच्छा वो छोड़ो तुम पहले चुप हो जाओ ।" "मुझे तुम्हारे बिना नहीं ...

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लेखक के बारे में
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धीरज झा

नाम धीरज झा, काम - स्वछंद लेखन (खास कर कहानियां लिखना), खुद की वो बुरी आदत जो सबसे अच्छी लगती है मुझे वो है चोरी करना, लोगों के अहसास को चुरा कर कहानी का रूप दे देना अच्छा लगता है मुझे....किसी का दुःख, किसी की ख़ुशी, अगर मेरी वजह से लोगों तक पहुँच जाये तो बुरा ही क्या है इसमें :) .....इसी आदत ने मुझसे एक कहानी संग्रह लिखवा दिया जिसका नाम है सीट नं 48.... जी ये वही सीट नं 48 कहानी है जिसने मुझे प्रतिलिपि पर पहचान दी... इसके तीन भाग प्रतिलिपि पर हैं और चौथा और अंतिम भाग मेरे द्वारा इसी शीर्षक के साथ लिखी गयी किताब में....आप सब की वजह से हूँ इसीलिए कोशिश करूँगा कि आप सबका साथ हमेशा बना रहे... फेसबुक पर जुड़ें :- https://www.facebook.com/profile.php?id=100030711603945

समीक्षा
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  • author
    Kanchan Jha
    20 फ़रवरी 2018
    larkiyon ki kon sunta he itni jitni ki Ragini k maa baap ne sun Li.Abhay to apni Rau me bah gye Nice story🙏
  • author
    20 फ़रवरी 2018
    very nice Story,thoda rulaya bhi .mgr Heart touching story full marks
  • author
    Pinky Mishra
    14 मई 2021
    कभी कभी प्यार क्या इतना नीरस हो जाता है की अपनी ही चुनी जिन्दगी से मिलने मे इतने साल लग जाते है। रूहानी प्यार मे एक दोसरे से मिलने की चाह कम होती है क्या झा जी
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    Kanchan Jha
    20 फ़रवरी 2018
    larkiyon ki kon sunta he itni jitni ki Ragini k maa baap ne sun Li.Abhay to apni Rau me bah gye Nice story🙏
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    20 फ़रवरी 2018
    very nice Story,thoda rulaya bhi .mgr Heart touching story full marks
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    Pinky Mishra
    14 मई 2021
    कभी कभी प्यार क्या इतना नीरस हो जाता है की अपनी ही चुनी जिन्दगी से मिलने मे इतने साल लग जाते है। रूहानी प्यार मे एक दोसरे से मिलने की चाह कम होती है क्या झा जी