दो-तीन दिन की छुट्टियां बीताकर देर रात को यह सोचकर लौटा था कि मैं तो सरकारी मुलाज़िम हूँ. कहीं हड्डी-तोड़ काम पर जाना तो है नहीं. सुबह देर तक सोना है और सफ़र की थकान मिटाना है.लेकिन अलसुबह ही फोन घनघना ...
दो-तीन दिन की छुट्टियां बीताकर देर रात को यह सोचकर लौटा था कि मैं तो सरकारी मुलाज़िम हूँ. कहीं हड्डी-तोड़ काम पर जाना तो है नहीं. सुबह देर तक सोना है और सफ़र की थकान मिटाना है.लेकिन अलसुबह ही फोन घनघना ...