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व्यंग्य-कहानी गांव के

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व्यंग्य-कहानी गांव के करियाऽ अक्षर भैस  बराबर पोथी के  ज्ञान सुनावऽ ताड़े, सब दिन  रहतऽ  घर  ही में विदेश के बात बतावऽ ताड़े। दिल्ली  मुम्बई  कबहुँ  ना गइलें घर ही से सब कुछ देखे सुनेलेंऽ, एक ...

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लेखक के बारे में

दर्द आँसू और अहसास जीवन के हैं सब खास, क्या लिखूँ मैं आज। गरीबों का आस लिखूँ अमीरों का विलास लिखूँ पाखण्डीयों का जाल लिखूँ लिखूँ भ्रष्ट नेताओं का दास्तान क्या लिखूँ मैं आज। नारी की पीड़ा लिखूँ पियत पुरूष मदिरा लिखूँ बाल मजदूरों की जखीरा लिखूँ लिखूँ घुमत शिक्षित युवा बेरोजगार क्या लिखूँ मैं आज। त्रिवेणी कुशवाहा "त्रिवेणी" डिप्लोमा इन सिविल इंजीनियरिंग, इन 2003 - सेन्ट्रल इण्डिया इन्स्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एण्ड स्टडीज, मास्टर ट्रेनर कोर्स,इन 2004 - होम्सग्लेन, आस्ट्रेलिया, स्किल ट्रेनर एवम् मोटीवेटर बहुराष्ट्रीय निर्माण कम्पनी में भारत एवम् जी सी सी कन्ट्रीज, सामाचार पत्रों में प्रकाशित कविताएँ ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    स्थानीय बोली में अच्छा व्यंग
  • author
    Rakesh Chaurasia
    12 जून 2020
    बहुत सुंदर रचना और व्यंग भी
  • author
    बहुत खूब बेहतरीन हस्यव्यंग
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    स्थानीय बोली में अच्छा व्यंग
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    Rakesh Chaurasia
    12 जून 2020
    बहुत सुंदर रचना और व्यंग भी
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    बहुत खूब बेहतरीन हस्यव्यंग