शीर्षक - वियोग श्रृंगार रस क्यों? करते हैं,हम,इंतजार तेरा,आज भी क्यों? निगाहें,तरस जाती हैं दीदार को, तेरे आज भी ll दिल की, धड़कन को, कौन समझाए, अब,भला ज़ब, कोई निशान भी, तेरा,नहीं रहा, आज भी ll ...
क्यों तुम पहचान कर भी अनजान बने रहते हो
दोस्ती का मुखौटा पहनकर दुश्मनों सा व्यवहार करने लगते हो ll
शायद यही होती है दोस्ती ऐसी कहलाती है दोस्ती
पहले दोस्त बनाते हो फिर दुश्मन बनकर पीठ में खंजर घोपने लगते हो l
Sumi
सारांश
क्यों तुम पहचान कर भी अनजान बने रहते हो
दोस्ती का मुखौटा पहनकर दुश्मनों सा व्यवहार करने लगते हो ll
शायद यही होती है दोस्ती ऐसी कहलाती है दोस्ती
पहले दोस्त बनाते हो फिर दुश्मन बनकर पीठ में खंजर घोपने लगते हो l
Sumi
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