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झम-झम, झम-झम बरसत है, नैनों से अश्रु नीर। का करूँ सखी श्रृंगार मैं, विरह है कोचे तीर।। हे प्रियवर सूनी बगिया में, मैं नित निहारूं तस्वीर। एक झलक दिखलाकर के, ह्रदय को दे तासीर।। वेदना से चंचल मन में, ...
मैं साक्षी त्रिपाठी हूँ, आप सभी मेरे नाम से तो भलीभांति परिचित है क्योंकि वो तो ऊपर साफ शब्दों में दिखाई दे रहा है। मेरा जन्म इलाहाबाद में हुआ है जिसका नाम अब बदल कर प्रयागराज हो गया है। मैंने अर्थशास्त्र से एम.ए. और बी.एड की डिग्री प्राप्त की है। पढ़ना मेरी रुचि है, और लिखने का शौक मुझे मेरे दादाजी से मिला, जब मैं छोटी थी तो वो अक्सर कुछ चित्र बनाते थे फिर उन्हीं चित्रों से जुड़ी कवितायें लिखते थे। उनको देख कर मैं भी लिखने लिखने की कोशिश करती थी,पर अपनी कविताओं को कभी किसी के सामने लाने की हिम्मत नहीं कर पाती। जब भी वक्त मिलता कहीं भी कुछ पंक्तियाँ जो मन में आ जाती लिख देती। अक्सर मैं अपनी काॅपी के बीच में अपनी कविताओं को लिखती जिससे कोई देख न पाये। हाँ बस एक बार विद्यालय की पुस्तक के लिए एक कविता लिखी ही जिसे सिर्फ विद्यालय तक ही सीमित रखा था घर पर किसी को इस बारे में बताने की हिम्मत नहीं कर पाई थी। समय यूँ ही बीत गया पर आदत नहीं बदली शादी हो गई फिर भी छुपा कर ही लिखती थी, फिर एक दिन यूँ ही फेसबुक पर अपनी एक दोस्त की लिखी चंद लाइनें पढ़ी तो उसकी पोस्ट पर मैंने भी कुछ पंक्तियाँ लिखकर पोस्ट कर दी। मेरी पंक्तियों को पढ़कर उसने मुझे तुरंत रिप्लाइ किया, क्या बाबा क्या बात है तुम भी कवि निकली, छुपी रुस्तम। बहुत खूब लिखा तुमने। बस फिर क्या था, मुझे उसकी ये बात हर वक्त सुनाई सी पड़ने लगी। और उस दिन से मैंने फेसबुक के कुछ समूहों पर अपनी कविता को लिखना शुरू किया। फिर धीरे-धीरे ये सिलसिला बढ़ा, घर में मेरी मम्मी को जब पता चला कि मैं लिखतीं हूँ तो वो बहुत खुश हुई। पर उनके अलावा बहुत से पारिवारिक लोगों को मेरा लिखना आज भी नहीं पसंद है बहुत कोशिश की सब ने की मैं लिखना बन्द कर दूँ कई बार तो मैं बहुत निराश भी हुई पर इस निराशा में भी कलम चल पड़ती, सब ने मना किया पर मेरी मम्मी ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया और कहा बेटा ये तुम्हारी ताकत है, इसका साथ कभी मत छोड़ना, बहुत ख़ुशनसीब हो तुम जो भगवान ने तुम्हें ये कला दी है। लोगों की सिर्फ अच्छी बातें याद रखों और हमेशा लिखते रखों। मम्मी की बात और लोगों के प्रोत्साहन ने मुझे लिखने के लिए और अधिक प्रेरित किया। बस आप सभी का साथ और आशीर्वाद चाहिए। प्रकाशित पुस्तक- मनसा वाचा कर्मणा ( सहलेखक)। पुरस्कार- शब्दांचल द्वारा सप्ताहांत प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार, और 19 बार प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान के लिए प्रशंसापत्र, प्रतिलिपि द्वारा आयोजित मानसून फेस्टिवल में चतुर्थ स्थान के लिए प्रशंसापत्र। ई.मेल- [email protected] insta- sakshi.shukla528
मैं साक्षी त्रिपाठी हूँ, आप सभी मेरे नाम से तो भलीभांति परिचित है क्योंकि वो तो ऊपर साफ शब्दों में दिखाई दे रहा है। मेरा जन्म इलाहाबाद में हुआ है जिसका नाम अब बदल कर प्रयागराज हो गया है। मैंने अर्थशास्त्र से एम.ए. और बी.एड की डिग्री प्राप्त की है। पढ़ना मेरी रुचि है, और लिखने का शौक मुझे मेरे दादाजी से मिला, जब मैं छोटी थी तो वो अक्सर कुछ चित्र बनाते थे फिर उन्हीं चित्रों से जुड़ी कवितायें लिखते थे। उनको देख कर मैं भी लिखने लिखने की कोशिश करती थी,पर अपनी कविताओं को कभी किसी के सामने लाने की हिम्मत नहीं कर पाती। जब भी वक्त मिलता कहीं भी कुछ पंक्तियाँ जो मन में आ जाती लिख देती। अक्सर मैं अपनी काॅपी के बीच में अपनी कविताओं को लिखती जिससे कोई देख न पाये। हाँ बस एक बार विद्यालय की पुस्तक के लिए एक कविता लिखी ही जिसे सिर्फ विद्यालय तक ही सीमित रखा था घर पर किसी को इस बारे में बताने की हिम्मत नहीं कर पाई थी। समय यूँ ही बीत गया पर आदत नहीं बदली शादी हो गई फिर भी छुपा कर ही लिखती थी, फिर एक दिन यूँ ही फेसबुक पर अपनी एक दोस्त की लिखी चंद लाइनें पढ़ी तो उसकी पोस्ट पर मैंने भी कुछ पंक्तियाँ लिखकर पोस्ट कर दी। मेरी पंक्तियों को पढ़कर उसने मुझे तुरंत रिप्लाइ किया, क्या बाबा क्या बात है तुम भी कवि निकली, छुपी रुस्तम। बहुत खूब लिखा तुमने। बस फिर क्या था, मुझे उसकी ये बात हर वक्त सुनाई सी पड़ने लगी। और उस दिन से मैंने फेसबुक के कुछ समूहों पर अपनी कविता को लिखना शुरू किया। फिर धीरे-धीरे ये सिलसिला बढ़ा, घर में मेरी मम्मी को जब पता चला कि मैं लिखतीं हूँ तो वो बहुत खुश हुई। पर उनके अलावा बहुत से पारिवारिक लोगों को मेरा लिखना आज भी नहीं पसंद है बहुत कोशिश की सब ने की मैं लिखना बन्द कर दूँ कई बार तो मैं बहुत निराश भी हुई पर इस निराशा में भी कलम चल पड़ती, सब ने मना किया पर मेरी मम्मी ने हमेशा मुझे प्रोत्साहित किया और कहा बेटा ये तुम्हारी ताकत है, इसका साथ कभी मत छोड़ना, बहुत ख़ुशनसीब हो तुम जो भगवान ने तुम्हें ये कला दी है। लोगों की सिर्फ अच्छी बातें याद रखों और हमेशा लिखते रखों। मम्मी की बात और लोगों के प्रोत्साहन ने मुझे लिखने के लिए और अधिक प्रेरित किया। बस आप सभी का साथ और आशीर्वाद चाहिए। प्रकाशित पुस्तक- मनसा वाचा कर्मणा ( सहलेखक)। पुरस्कार- शब्दांचल द्वारा सप्ताहांत प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार, और 19 बार प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान के लिए प्रशंसापत्र, प्रतिलिपि द्वारा आयोजित मानसून फेस्टिवल में चतुर्थ स्थान के लिए प्रशंसापत्र। ई.मेल- [email protected] insta- sakshi.shukla528
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