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हिन्दी

विमाता

4.7
15740

स्त्री की मृत्यु के तीन ही मास बाद पुनर्विवाह करना मृतात्मा के साथ ऐसा अन्याय और उसकी आत्मा पर ऐसा आघात है जो कदापि क्षम्य नहीं हो सकता। मैं यह कहूँगा कि उस स्वर्गवासिनी की मुझसे अंतिम प्रेरणा थी और ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Anita Shrinivas
    24 जनवरी 2019
    बहोत अच्छी कहानी है। माँ तो माँ होती है। सभी सौतेली माँ बुरी नही होती। बालक तो प्यारका भुका होता है। और ए प्यार उसकी माँ(सौतेली)मुन्नूको देती थी ।इसको डर तो था कि जादा प्यार करनेवाले भगवणको प्यारे होते है इसलिए मुन्नू रोता था।
  • author
    Sujit Singh
    24 जनवरी 2019
    साहित्य शिल्पी और श्रेष्ठ पुरुषत्व के धनी प्रेमचंद जी को कोटि कोटि प्रणाम।
  • author
    Deepa Malik
    15 दिसम्बर 2019
    इनकी कहानी का कुछ अलग ही अंदाज़ होता है सोच से परे।
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    Anita Shrinivas
    24 जनवरी 2019
    बहोत अच्छी कहानी है। माँ तो माँ होती है। सभी सौतेली माँ बुरी नही होती। बालक तो प्यारका भुका होता है। और ए प्यार उसकी माँ(सौतेली)मुन्नूको देती थी ।इसको डर तो था कि जादा प्यार करनेवाले भगवणको प्यारे होते है इसलिए मुन्नू रोता था।
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    Sujit Singh
    24 जनवरी 2019
    साहित्य शिल्पी और श्रेष्ठ पुरुषत्व के धनी प्रेमचंद जी को कोटि कोटि प्रणाम।
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    Deepa Malik
    15 दिसम्बर 2019
    इनकी कहानी का कुछ अलग ही अंदाज़ होता है सोच से परे।