वेंकटेशजी मोहरें सजाने लगे, शतरंज के बोर्ड पर ।उन्होंने शीतल से कहा," तू भी मोहरें सजा ।"
पापा बेटी की अद्भुत जोड़ी से मिलिए ,इस कहानी के माध्यम से । नमस्कार ।
बेटी होना कोई गुनाह नहीं है कि उसे बेटा बनाना है। बेटा पुरुष होकर सम्पूर्ण है तो बेटी नारी होकर। नारी होकर बेटी कहीं भी न निम्न है और न कमजोर, उसे नारी ही बनना चाहिये। नारी में नारित्व ही होना चाहिये ताकि उसके हृदय में दया, ममता और स्नेह की मंदाकिनी इठलाती रहे।
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बेटी होना कोई गुनाह नहीं है कि उसे बेटा बनाना है। बेटा पुरुष होकर सम्पूर्ण है तो बेटी नारी होकर। नारी होकर बेटी कहीं भी न निम्न है और न कमजोर, उसे नारी ही बनना चाहिये। नारी में नारित्व ही होना चाहिये ताकि उसके हृदय में दया, ममता और स्नेह की मंदाकिनी इठलाती रहे।
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