मैं तो इतनी दीवानगी में था कि वेद जी की एक पुस्तक रोज पढ़ डालता था.1983-84 का वक्त था.पुस्तकों की लाइब्रेरी हुआ करती थीं जगह जगह.किताब की कीमत जमा कर,दो तीन रुपए किराए पर किताबे मिल जाती थीं. पढ़ कर किताब वापस करो और जमा राशि से किराया काट कर पैसे लौटा देता था लाइब्रेरियन.....😍😍😍
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